जल संरक्षण के उदाहरण बने किसान रमेश प्रजापत | Jal sanrakshan ke udahran bane kisan ramesh prajapat

जल संरक्षण के उदाहरण बने किसान रमेश प्रजापत

खेत तालाब से पिछले 15 वर्षों से 40 बीघा में पलेवा कर रहे हैं

जल संरक्षण के उदाहरण बने किसान रमेश प्रजापत

उज्जैन (रोशन पंकज) - महिदपुर तहसील के ग्राम मेंढकी के कृषक श्री रमेश प्रजापत और उनके परिवार की 40 बीघा जमीन में कभी केवल एक फसल हुआ करती थी। बमुश्किल से रबी में इतनी जमीन में 10-15 क्विंटल चना ही पैदा होता था। वे हमेशा सोचते कि जमीन का उपयोग कर कैसे सिंचाई और आमदनी बढ़ाई जाये।

वर्ष 2002 में प्रदेश सरकार जिसके मुखिया श्री दिग्विजयसिंह थे, उनके नेतृत्व में प्रदेश में वाटरशेड कार्यक्रम चलाया जा रहा था। ग्राम मेढकी में भी वाटरशेड कमेटी बनी और उसके सचिव बने श्री रमेश प्रजापत। श्री रमेश प्रजापत जनस्वास्थ्य रक्षक भी थे, इस कारण गांव में उन्हें आज भी डॉक्टर के नाम से जाना जाता है। धीरे-धीरे वाटरशेड के काम बढ़ने लगे। श्री प्रजापत की भी समझ में कुछ जल संरक्षण की बात आने लगी।

जल संरक्षण के उदाहरण बने किसान रमेश प्रजापत

आसपास के गांव में वाटरशेड के अधिकारियों की प्रेरणा से खेत-तालाब (डबरी) खुदने लगी। इन कामों में रमेश प्रजापत के बड़े भाई जो ट्रेक्टर चलाते थे, को भी काम मिलने लगा। खेत-तालाब के लाभ के बारे में उन्हें जिज्ञासा हुई। जानकारी मिलने पर वे अपने पिता व भाईयों से इसकी चर्चा करते। धीरे-धीरे सभी भाईयों का मन बनने लगा कि उस 40 बीघा जमीन, जहां पर पानी के अभाव में केवल एक फसल लेकर रह जाना पड़ता है, वहां एक बीघा में खेत-तालाब (डबरी) बनाई जाये। पिताजी से चर्चा करने पर उन्होंने स्पष्टत: इसे समय, जमीन और धन की बर्बादी बताया, किन्तु रमेश प्रजापत और उनके चार भाई अब मन बना चुके थे, कि अब जो भी हो वे खेत-तालाब बनायेंगे। वर्ष 2002 में 50 हजार रुपये और घर के लोगों के श्रम से एक छोटे नाले पर डबरी बनाना शुरू कर दिया। दस से 15 फीट गहरी खुदाई करने पर ही काला पत्थर आ गया। मिट्टी की पाल आदि तैयार कर इसे छोटे तालाब का रूप दे दिया गया, किन्तु पहली बारिश में ही पाल फूट गई।


कर्मठ किसान द्वारा हार नहीं मानते हुए इस घटना से सीख लेकर तालाब की ढलान की तरफ नाका बना दिया गया और पाल को और मजबूत किया गया। दूसरे साल खेत-तालाब में पर्याप्त पानी इकट्ठा हो गया और पहली बार पांच बीघा में रमेश प्रजापत के परिवार ने गेहूं बोया। लाभ मिलने पर उत्साह बढ़ा और डबरी साल दर साल गहरी और चौड़ी होती गई। किसान रमेश प्रजापत कहते हैं हर साल हमारा परिवार इस जल संरचना के रख-रखाव में दो से ढाई लाख रुपये लगाता है। ज्यों-ज्यों डबरी का आकार बढ़ता गया, त्यों-त्यों सिंचाई का रकबा भी बढ़ता गया। इस खेत तालाब से आज 40 बीघा जमीन में तीन पानी दिया जा रहा है। चारों तरफ गेहूं की फसल लहलहा रही है। रमेश प्रजापत बताते हैं कि इसी डबरी की बदौलत अब हर साल वे 400 से 500 क्विंटल गेहूं पैदा कर रहे हैं। आसपास के क्षेत्र के लिये प्रेरणा बने किसान रमेश प्रजापत की इस युक्ति के कारण गांव में चार खेत तालाब और तैयार हो गये हैं। रमेश प्रजापत के उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि यदि लगन से काम किया जाये तो वह न केवल करने वाले के लिये बल्कि आसपास के लोगों के लिये भी अनुकरणीय साबित होता है।

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