संत वहीं जिसमें संयम, आचरण होने के साथ धन की लालसा ना हो - आचार्य डाॅ. दिव्यानंद सूरीष्वरजी मसा | Sant vahi jisme sanyam achran hone ke sath dhan ki lalsa na ho

संत वहीं जिसमें संयम, आचरण होने के साथ धन की लालसा ना हो - आचार्य डाॅ. दिव्यानंद सूरीष्वरजी मसा

युवाओं के आचरण और विचारों को बिगाड़ रहा इंटरनेट और सोष्यल मीडिया

संत वहीं जिसमें संयम, आचरण होने के साथ धन की लालसा ना हो - आचार्य डाॅ. दिव्यानंद सूरीष्वरजी मसा

झाबुआ (मनीश कुमट) - समन्वय मिशन के प्रेरक, सर्व-धर्म दीवाकर पंजाब मालव केसरी क्रांतिकारी राष्ट्रसंत परम् पूज्य आचार्य डाॅ. दिव्यानंद सूरीष्वरजी मसा (निराले बाबा) की पावन निश्रा में पांच दिवसीय श्री पाष्र्वनाथ भगवान का जन्म कल्याणक वाचन महोत्व स्थानीय राजगढ़ नाका स्थित श्री गोड़ी पाष्र्वनाथ मंदिर में संपन्न हुआ। इस दौरान आचार्य श्रीजी से की गई धर्म चर्चा में उन्होंने संत की परिभाषा बताते हुए कहा कि संत वहीं होता है, जिसमें संयम और सद् आचरण होने के साथ ही धन का लालच ना हो और मोह-माया से परे हो।

आचार्य डाॅ. दिव्यानंद सूरीजी ने बताया कि आज देष में संतों और साधुओं के नाम पर पाखंडता के और तरह-तरह के संगीन आरोप लगते हुए उन्हें जेल भी जाना पड़ रहा है, ऐसे में मनुष्य की आस्था देष में संतों और साधुओं के प्रति घटती जा रहीं है। आज मनुष्य को यह पहचानना मुष्किल हो गया है कि सहीं संत-साधु कौन और पाखंडी कौन ?, अर्थात धर्म के नाम पर आडंबर करने वाला कौन … ? इस हेतु आचार्य दिव्यानंद सूरीजी ने बताया कि सहीं मायने में सच्चा संत-साधु वहीं होता है, जो आडंबर रहित हो, अर्थात उनका संयम, आचारण अच्छा हो। वह धन-दौलत, वाहन, एषो-आराम और सांसारिक मोह-माया से दूर रहकर सन्यासी जीवन व्यतीत करे और जो दूसरो को हमेषा भला चाहे। मनुष्य को आज इन कसौटियों पर संतों और साधुओं का परीक्षण कर फिर ही उन्हें अपना सच्चा गुरू बनाना चाहिए। आचार्य ने बताया कि आज देष में 70 प्रतिषत पाखंड हो गया है और 30 प्रतिषत ही सच्चे संत और साधु रहे है। 

युवाओं में अच्छे विचारों और सद् आचरण लाना जरूरी

आचार्य श्रीजी ने देश में आज की भटकती युवा पीढ़ी एवं बढ़ते संगीत अपराधों पर कहा कि एक तरफ आज जहां कलयुग है तो ऐसे में युवाओं को झक-झोरने में उनके विचारों में नकारात्मकता अधिक लाने का काम सीधे तौर पर इंटरेनट एवं सोष्यल मीडिया ने किया। जिन पर परोसी जा रहीं अष्लीलता से युवा पीढ़ी का भटकाव हो रहा है और वह अपराधिक प्रवृत्तियों की ओर अधिक बढ़ रहीं है। इसके साथ ही टेलीविजन में फिल्मों, नाटकों ओर गानों में अष्लीलता आज साफ तौर पर देखने को मिल रहीं है, ऐसे में युवाओं को भारतीय संस्कृति-परंपराओं और सद्विचारों तथा सद्आचरण से जोड़ने का काम माता-पिता और परिवारजनों को बचपन से ही करना जरूरी है।

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