किसान मित्र होते हैं बगुले
धामनोद (मुकेश सोडानी) - जलाशयों में हम अक्सर सफेद बगुलों को एक टांग पर घंटों खड़े रहते देखते हैं। एकबारगी तो सबसे सुस्त पक्षी का एहसास होता है, लेकिन इनकी नजरें शिकार पर रहती हैं। शिकार दिखते ही यह तुरन्त उसे लपक लेते हैं। यह एकाग्र और मौन साधना का तरीका भी सिखाते हैं। इन दिनों बगुले किसानों को खेतों में जाकर अपना भोजन तलाश रहे हैं गौरतलब है कि आगामी दिनों में गेहूं की बुवाई खेतों में करने के लिए किसान लग चुके हैं जैसे ही किसान खेतों से हल या ट्रैक्टर से बुवाई करते है तो बगले अपना भोजन तलाशने में लग जाते हैं किसानों ने बताया कि इस वर्ष अतिवृष्टि के चलते कई छोटे-मोटे जीव जमीन के अंदर मेल गए थे बुवाई के दौरान जैसे ही हल चलता है बगुले को अपना भोजन मिल जाता है
आओ जाने बगुले और इनकी प्रजाति एवं प्रजनन के बारे में
कैटल इग्रेट प्रजाति के बगुलों को "गाय बगुला" या "बादामी बगुला" के नाम से भी जाना जाता है।। सामान्यत: इनका प्रजनन काल जून से अगस्त तक माना जाता है। मादा बगुला तीन से पांच अंडे देती है। जुलाई में इनके अंडों से बच्चे निकलते हैं। प्रजनन के दौरान बगुलों की गर्दन और पीठ के पंखों का रंग पीला-नारंगी हो जाता है। अगस्त में बच्चों के बड़े होते ही यह भोजन की तलाश में स्थान बदलते हैं।
किसानों के मित्र होते हैं
बगुलों को किसानों का मित्र भी कहा जाता है। खेतों में निकलने वाले कीड़े-मकोड़े, लटें, जलाशयों में मेंढक, छोटी मछलियां इनका मुख्य भोजन होती है। फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को खाने से किसानों का काफी नुकसान बचता है। बगुले पूरे भारत में बहुतायत में पाए जाते हैं। इनकी प्रजाति पर फिलहाल कोई खतरा नहीं है। अत्यधिक भीड़ वाले क्षेत्रों में भी यह नीड़ का निर्माण करते हैं।
Tags
dhar-nimad