कहीं बेतूल जैसा कारनामा पेटलावद में तो नहीं, क्षेत्र में हुए शोचालय निर्माण संदेह के घेरे में | Kahi betul jesa karnama petlawad main to nhi

कहीं बेतूल जैसा कारनामा पेटलावद में तो नहीं, क्षेत्र में हुए शोचालय निर्माण संदेह के घेरे में,  बैतूल जैसी जांच यंहा भी आवयश्क

कहीं बेतूल जैसा कारनामा पेटलावद में तो नहीं, क्षेत्र में हुए शोचालय निर्माण संदेह के घेरे में

पेटलावद (मनीष कुमट) - कहीं ऐसा तो नहीं कि अपनी वाहवाही लूटने के चक्कर में अधिकतर ग्राम पंचायतों में सरपंच सचिव और ब्लॉक समन्वयक की मिलीभगत के चलते कागजों पर ही ओडीएफ दर्शा दी गई हो और उच्च अधिकारियों से श्रेय लेने की की जुगाड़ में हो। क्योंकि यह कारनामा बेतूल जिले के भीमपुर जनपद पंचायत की ग्राम पंचायत लक्कड़ जाम मैं घटित हो चुका है। जब इसकी उच्च स्तरीय जांच शुरू हुई तब जाकर पता चला कि लक्ष्य पूरा करने के चक्कर में शौचालय पूर्ण होने की गलत जानकारी देकर राज्य शासन और केंद्र शासन को ओडीएफ होना बता दिया गया जबकि अनेकों हितग्राही ऐसे थे जिन्हें ना तो उन्हें राशि प्राप्त हुई थी ना ही उन्हें शौचालय बना कर दिए गए सिर्फ कागजों पर दर्शा दिया गया। 

पेटलावद तहसील के भी हाल कुछ ऐसे ही है, शौचालय निर्माण को लेकर बरती जा रही लापरवाही के चलते अनेकों हितग्राहियों को शौचालय कि ना तो राशि दी गई और ना ही शौचालय बना कर दिया गया पंचायतों के चक्कर काट काट कर हताश हो चुके हैं जिन पंचायत में शौचालय निर्माण हुए भी है वह भी घटिया और गुणवत्ताहिना होने के चलते बने शौचालय खंडहर का रूप लेने लगे हैं घटिया सामग्री का उपयोग करने के कारण शौचालय का बना ताबूत जिम्मेदार अधिकारियों की पोल खोलता दिखाई पड़ रहा है। घटिया शौचालय निर्माण होने के चलते उपयोग करने लायक नहीं है जिसके चलते सोच करने के लिए बाहर जंगल में जाने को मजबूर होना पड़ता है परंतु शासन की योजना होने के चलते हितग्राही यह सोचकर चुप हो जाता है कि सरकारी कामकाज है जैसा हो रहा है जो आ रहा है आने दो।

शौचालय निर्माण अघोषित ठेकेदारों के माध्यम से करवाएं गए जब से ।शौचालय बनाने की योजना शुरू हुई तब से यदि निष्पक्ष जांच की जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा

शौचालय निर्माण को लेकर अनेकों शिकायतें आ रही परंतु शिकायतकर्ता की शिकायत को जिम्मेदारों द्वारा दबाया जाता है। और जांच भी उस  अदने से अधिकारी से करवाई जाती है जो स्वयं जांच के घेरे में हैं यहां तक कि 181 सीएम हेल्पलाइन पर की गई शिकायत को भी बड़ी आसानी से निपटा दिया। आज तक उस हितग्राही का शौचालय नहीं बना है। परिवार जंगल में शौच करने को मजबूर  हैं  लगातार  उस पीड़ित  की मांग है कि  मुझको भी  शौचालय  चाहिए ताकि मेरा परिवार भी सोच के लिए बाहर नहीं जाए। झाबुआ आदिवासी बाहुल्य होने से अधिकतर योजनाओं के हकदार आदिवासी लोगो ही होते हैं सरकार अनेकों योजनाएं चलाकर इन्हें लाभ देने का काम कर रही है शासकीय तौर पर देखा जाए तो इसमें पात्र या अपात्र नहीं होता। सीधे योजनाओं के हकदार होते हैं परंतु अधिकारियों की मनमानी के चलते   योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है।

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