बाल भिक्षुक सर्व शिक्षा अभियान को आइना दिखा रहे हैं
धामनोद (मुकेश सोडानी) - स्कूल चलो अभियान को मुंह चिढ़ाते ये बाल भिक्षुक सरकारी योजनाओं से अंजान हैं। नगर के मुख्य मार्ग में कई बाल भिक्षुक दिख जाते हैं जिनकी जिंदगी में अज्ञानता का अंधेरा और गरीबी का अभिशाप घुला है, हालांकि इन मासूमों के लिए उनके लोगो के हाथ दिल खोलकर आशीर्वाद के लिए उठते हैं। लेकिन ये तमाम कारणों से किताब और कलम की जगह थाम लिये हैं यह कटोरा। बाल भिक्षुकों की मजबूरी अथवा अज्ञानता ने अभियान की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह लगा रखा है। सरकार द्वारा बाल भिक्षुकों को भी शिक्षा के इस अभियान से जोड़ने के प्रयास करने चाहिए। प्रशासन द्वारा इनके लिए अलग से टीम गठित कर शिक्षा का महत्व समझाना चाहिए लेकिन वह टीम सिर्फ जिला मुख्यालय के शानदार वातानुकूल कमरों में बैठकर कागजों के हिसाब किताब तक ही सिमट जाती है जबकि धरातल पर क्षेत्र में कई बाल भिक्षुक प्रतिदिन यह कार्य कर रहे हैं जिन्हें समझाने और प्रेरणा देने वाला विभाग चुप बैठा है
मासूम की उम्र 10 साल से अधिक नहीं
जो बाल भिक्षुक है वह यह शौक से नहीं बल्कि अपने परिवार की मजबूरी के कारण भी यह कार्य करते हैं परिवार और इन बाल भिक्षु को को समझाइए एवं कार्रवाई नहीं करने के कारण नगर में दर्जनों बाल भिक्षुक खुलेआम घूम रहे हैं जो पढ़ने-लिखने की उम्र में हाथ में कटोरा लेकर घर-घर घूम रहे है
चौराहों पर मांगने वाले बच्चों का बचपन
जिस उम्र में बच्चों के हाथ में कॉपी-किताब होना चाहिए। उस उम्र में बच्चों के हाथ भीख मांगने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। जब माता-पिता के हाथ बच्चों का हाथ पकड़कर उन्हें सही राह दिखाने के लिए आगे बढ़ना चाहिए उस समय वे भीख मांगने का रास्ता दिखा रहे हैं। बच्चों से भिक्षावृत्ति करवाने की प्रवृत्ति कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही है और प्रशासन के इसे रोकने के तमाम दावे फेल होते दिख रहे हैं भिक्षावृत्ति निषेध कानून के तहत बाल भिक्षुकों को रेस्क्यू करने की कार्रवाई नहीं होने के कारण एवं सिस्टम की लापरवाही के चलते हमेशा अभियान कमजोर पड़ गए। न तो महिला बाल विकास विभाग ने बाल भिक्षावृत्ति रोकने के लिए कोई सख्त कदम उठाया और न ही श्रम विभाग ने। नतीजा यह है कि शहर के चौराहे पर दर्जनों बच्चे रोज भीख मांगते देखे जाते हैं लेकिन अफसर आंख मूंद कर बैठे है।
Tags
dhar-nimad