स्वम्भू प्रकट हुई गया शिला पर तर्पण करने से मिलता है गयाजी का फल
बडवाह (गोविंद शर्मा) - कावेरी नदी के तटपर स्वम्भू प्रकट हुई गया शिला पर 16 श्राद्ध में पित्तरों का तर्पण करने से गयाजी में गयाशिला का फल प्राप्त होता है। इसी को लेकर दूर दूर से श्रद्धालुगण तर्पण के लिये पहुचते है। यह प्राचीन स्थान मध्यप्रदेश के बडवाह से करीब 18 किमी दूर सिद्धक्षेत्र जैन तीर्थ सिद्धवरकूट के समीप कावेरी नदी के तटपर पहाड़ो के बीच स्थित है। प्रकृति की सुंदर वादियों के बीच पहाड़ पर स्थित पांडव कालीन जीर्ण शीर्ण शिव मंदिर सहित खण्डर में तब्दील खण्डित अनेक मूर्तियो के साथ स्वंयभू प्रकट हुई गयाशिला मौजूद हैं।
पण्डित धर्मेन्द्र पाठक ने बताया कि यह उल्लेखित प्राचीन कथा व स्कंद पुराण के अनुसार द्वापर युग मे माँ नर्मदा की भक्ति में लीन रहकर निरन्तर परिक्रमा करने वाले मार्कण्डेय ऋषि ने इसी स्थान पर चतुर्मास किया था। इसी दौरान मार्कण्डेय ऋषि ने 16 श्राद्ध में गयाजी मे गयाशिला पर अपने पूर्वजों के पिंडदान व तर्पण के लिये इच्छा जताते हुए भगवान श्रीहरि विष्णु का ध्यान व तप किया। विष्णु भक्त होने के कारण श्रीहरि विष्णु जी ने प्रकट होकर ब्राह्मण का वेश धारण कर स्वयम्भू प्रकट हुई गयाशिला पर तर्पण करवाया था। जिससे मार्कण्डेय ऋषि को गयाजी स्थित गयाशिला का फल प्राप्त हुआ था। ऐसी किदवंती है। आज भी जो श्रद्धालु यहा पर तर्पण करता है उसे भी गयाजी का फल प्राप्त होता है।
पंडित जी यह भी बताते हैं कि गयाजी में जो श्रापित नदी फाल्गु है जो विलुप्त हैं उसी प्रकार यहा पर भी एरण्य नदी है जो विलुप्त होकर कावेरी में मिल रही है।
बताया जाता है कि पांडवो ने भी अज्ञातवास के दौरान यहा रहकर अपने पूर्वजों का तर्पण किया था।
सोलह श्राद्ध में इस स्थान पर विद्वान पंडितो द्वारा 16 दिवसीय टेंट लगाकर आने वाले श्रद्धालुओं के लिये देव स्थपित करते हुए नारायण बलि नागबली त्रिपिंडी श्राद्ध गया श्राद्ध महालय श्राद्ध एवं तर्पण कर्म के साथ ब्राह्मण भोज का कर्म करवाया जाता है।
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