जीवात्मा के बंधन और मुक्ति का कारण मन ही है - स्वामी प्रणवानंद सरस्वती
श्रीमद्भागवत गीता के मंत्र पर संतों का सारगर्भित विवेचन
ओंकारेश्वर (ललित दुबे) - मन को शुद्ध करने के जितने भी उपाय हो उसे हमें करना चाहिए हम कपड़ों शरीर की तथा उसके एक-एक अंग की सफाई करते हैं लेकिन मन की सफाई के लिए कुछ नहीं करते हमारा मन शुद्ध हो तभी वह परमात्मा में लग सकता है पहले के संत और राजा अपना सब कुछ छोड़ कर जंगल में जाते थे उनका उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति था
इसके लिए मनुष्य को भी अपने प्रयास करना चाहिए देवीय संपदा को मन में लाने के लिए ज्ञान प्राप्ति के उपाय जीवन में कर्म की तथा तपस्या की आवश्यकता के साथ श्रवण मनन तथा चिंतन भी किया जाना चाहिए तब कहीं जाकर आप अपने मन को परमात्मा में लगा सकते हैं
उपरोक्त उद्गार मार्कंडेय संयास आश्रम के स्वामी प्रणवानंद जी सरस्वती ने ब्रह्मलीन संत रामानंद जी सरस्वती के एकादश निर्वाण महोत्सव के दूसरे दिवस श्रीमद्भगवद्गीता के मंत्र चेत खल वश्य बंधा मुक्त ये चात मनो मतम विषय पर व्यक्त किए
कार्यक्रम के संचालक संत किशोर चैतन्य जी ने उपरोक्त विषय के संबंध में कहां की मनुष्य को सुबह से शाम तक एक ही प्रयास करना चाहिए कि उसका अंत करण शुद्ध हो साधना के बीच वासना नहीं आना चाहिए इसलिए हमारा एक ही निश्चय सुबह से शाम तक एवं जीवन पर्यंत यही प्रयास होना चाहिए कि हमारा अंतःकरण शुद्ध हो वासनाओं के समाप्त होने से मन हल्का होता है
बालक वृद्ध रोगी और संत की सेवा अध्यात्म का मार्ग
आर्ष गुरुकुल गुरुकुलम आश्रम लखनऊ के स्वामी अभयानंद जी सरस्वती श्रीमद्भागवत गीता के उपरोक्त विषय पर कहा कि भागवत ऐसा दिव्य शास्त्र है जिसमें सगुण और निर्गुण दोनों स्वरूप आते हैं जहां संकल्प विकल्प चल रहा है वही मन है जो निरंतर प्रवाह चल रहा है वही मन है मन को परिवार का धन का संबल या स्वामी जी ने आगे कहा कि जीवन जीने का सबसे बड़ा सूत्र है ना किसी से अपेक्षा न उपेक्षा जितना हो सके बालक वृद्ध रोगी और संत इन चार प्रकार. के लोगों की सेवा करना चाहिए बाकी सारे करते हुए हैं लोक व्यवहार है लेकिन इन उपरोक्त चारों की सेवा ही मन को शुद्ध करती है
चंदन देव अवधूत आश्रम ऋषिकेश के स्वामी अखंडानंद जी महाराज ने इस अवसर पर कहा कि सारे साधनों का मूल विवेक ही है जिस पुण्यात्मा को विवेक की जागृति हो जाए वह चल पड़ता है विवेक होगा तो वैराग्य होगा वैराग्य ही वास्तव में अभय प्रदाता है आसक्ति एवं राग द्वेष के खुटे से बंधा हुआ मन है जब यह विवेक के जाग्रत होने पर खुलेगा तब वैराग्य उत्पन्न होगा और यही मुक्ति पद को प्राप्त कराने का साधन है
आज मनुष्य के मन को लेकर दो सत्रों में विद्वत संत जनों जिनमे कैथल हरियाणा के संत महामंडलेश्वर स्वामी श्री विराग आनंद जी सरस्वती साधना सदन हरिद्वार के संत महामंडलेश्वर स्वामी विश्वास आत्मानंद पुरी जी स्वामी विजयानंद पुरी जी महाराज ऋषिकेश के साथ महाराष्ट्र के श्री हनुमंत जी महाराज ने भी उपरोक्त विषय के संबंध में अपने सारगर्भित विचार उपस्थित संत जन एवं भक्तजनों के समक्ष व्यक्त की है किए
उल्लेखनीय है कि मार्कंडेय संयास आश्रम में पिछले 11 वर्षों से वेद एवं पुराणों में उल्लेखित निश्चित विषयों पर देश के जाने-माने संत गणों द्वारा सारगर्भित विवेचन की परंपरा का अद्भुत कार्य का लाभ लेने हेतु देश के अनेक प्रांतों से संत गण तथा भक्तगण बड़ी संख्या में इस्त्री दिवसीय कार्यक्रम में आध्यात्मिक आनंद लेने के लिए आते हैं
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