कर्नाटक विधानसभा में RSS की प्रार्थना गाकर डीके शिवकुमार ने चौंकाया, सियासी गलियारों में हलचल Aajtak24 News

कर्नाटक विधानसभा में RSS की प्रार्थना गाकर डीके शिवकुमार ने चौंकाया, सियासी गलियारों में हलचल Aajtak24 News

बेंगलुरु - कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता डीके शिवकुमार ने हाल ही में विधानसभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की प्रार्थना 'नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे' गाकर सबको हैरान कर दिया। यह घटना उस समय हुई जब सदन में चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुई भगदड़ पर चर्चा चल रही थी। अपनी राजनीतिक यात्रा के बारे में बात करते हुए शिवकुमार ने स्वीकार किया कि वह कभी RSS से जुड़े थे। विपक्ष के नेता आर अशोका ने जब उन्हें इस बात की याद दिलाई, तो शिवकुमार ने कहा कि उन्हें आज भी वह प्रार्थना याद है और उन्होंने इसे गाना शुरू कर दिया। उनके इस कदम पर बीजेपी विधायकों ने मेजें थपथपाकर खुशी जताई, और सदन ठहाकों से गूंज उठा।

शिवकुमार का यह कदम सिर्फ एक सामान्य घटना नहीं है, बल्कि इसके गहरे राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कांग्रेस आलाकमान और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के लिए एक सीधा और स्पष्ट संदेश है। सोशल मीडिया पर भी यह वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जहां यूजर्स तरह-तरह के कयास लगा रहे हैं। कई लोगों का कहना है कि यह सिद्धारमैया को दी गई 'सीधी चेतावनी' है। उनके अनुसार, शिवकुमार इस इशारे से यह बताना चाहते हैं कि अगर मुख्यमंत्री पद को लेकर उनकी महत्वाकांक्षाओं को नजरअंदाज किया गया या उन्हें दरकिनार किया गया, तो उनके पास बीजेपी में जाने का विकल्प अब भी खुला है। कुछ अन्य लोगों ने यह भी टिप्पणी की कि अगर कांग्रेस ने उनकी बात नहीं मानी तो जल्द ही वह 'काशी मथुरा बाकी है' जैसे नारे लगाते भी दिख सकते हैं। यह घटना कर्नाटक की राजनीति में चल रही आंतरिक खींचतान को भी उजागर करती है, जहां मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच सत्ता संघर्ष की खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं।

यह घटना इसलिए भी अधिक चौंकाने वाली है क्योंकि कुछ समय पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से RSS की तारीफ की थी। उस समय डीके शिवकुमार ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि RSS एक नया संगठन है और उसका कोई इतिहास नहीं है, जबकि कांग्रेस का इतिहास बहुत पुराना है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि RSS ने आजादी के बाद भी लंबे समय तक तिरंगा नहीं फहराया। इस पृष्ठभूमि में, शिवकुमार का संघ की प्रार्थना गाना राजनीतिक विरोधाभास को दर्शाता है। यह दिखाता है कि राजनीति में कोई भी चीज़ स्थायी नहीं होती और परिस्थितियाँ कभी भी बदल सकती हैं।

डीके शिवकुमार का राजनीतिक करियर हमेशा से ही उतार-चढ़ाव भरा रहा है। वह अपनी पार्टी के लिए एक संकटमोचक की भूमिका निभाते रहे हैं। हालांकि, मुख्यमंत्री पद की उनकी महत्वाकांक्षा जगजाहिर है और सिद्धारमैया के साथ उनकी प्रतिस्पर्धा कोई नई बात नहीं है। यह घटना कर्नाटक की राजनीति में आने वाले दिनों में और भी गरमाहट पैदा कर सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस आलाकमान इस घटना को किस तरह लेता है और क्या इसका असर सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच के संबंधों पर पड़ता है। यह घटना यह भी दर्शाती है कि राजनीति में सिर्फ विचारधारा ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।



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