दागी PM-CM को हटाने वाला संविधान संशोधन विधेयक: NDA के लिए ⅔ बहुमत की चुनौती, JPC की रिपोर्ट पर टिकी निगाहें Aajtak24 News


दागी PM-CM को हटाने वाला संविधान संशोधन विधेयक: NDA के लिए ⅔ बहुमत की चुनौती, JPC की रिपोर्ट पर टिकी निगाहें Aajtak24 News

नई दिल्ली - देश में राजनीतिक शुचिता और पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से लाया गया 130वां संविधान संशोधन विधेयक, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री को गंभीर अपराध में गिरफ्तारी और 30 दिन तक न्यायिक हिरासत में रखे जाने पर उनके पद से हटने का प्रावधान है, एक बड़े राजनीतिक और संवैधानिक द्वंद्व के केंद्र में आ गया है। लोकसभा में भारी हंगामे के बीच इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेज दिया गया है, लेकिन इसे कानून बनाने की राह में कई बड़ी संवैधानिक अड़चनें सामने खड़ी हैं। सबसे बड़ी चुनौती संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत हासिल करने की है, जो कि सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के लिए एक कठिन परीक्षा साबित हो सकती है।

बिल और इसकी संवैधानिक चुनौतियां

यह विधेयक सिर्फ एक साधारण कानून नहीं, बल्कि एक संविधान संशोधन बिल है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत, किसी भी संविधान संशोधन विधेयक को पारित करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया का पालन करना होता है, जिसमें तीन प्रमुख चरण होते हैं।

  1. संसद में कुल सदस्यों का बहुमत: विधेयक को संसद के दोनों सदनों में, यानी लोकसभा और राज्यसभा में, कुल सदस्यों के बहुमत से पारित होना चाहिए।

  2. सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत: यह शर्त इस विधेयक को पारित कराने की सबसे बड़ी बाधा है।

  3. आधे से अधिक राज्य विधानसभाओं से अनुसमर्थन: चूँकि यह बिल राज्यों के संघीय ढांचे से जुड़ा है, इसलिए इसे कम से कम 50 प्रतिशत राज्यों की विधानसभाओं से भी पास कराना अनिवार्य है।

संसद में NDA का संख्या बल: एक विश्लेषण

इन अड़चनों को देखते हुए, आइए संसद में NDA के मौजूदा संख्या बल पर एक नजर डालते हैं:

  • लोकसभा में स्थिति: लोकसभा में कुल 542 सदस्य हैं, और विधेयक को पारित कराने के लिए कुल सदस्यों का 50% से अधिक यानी 272 सांसदों का समर्थन आवश्यक है। NDA के पास वर्तमान में 293 सांसद हैं, इसलिए यह पहली शर्त आसानी से पूरी हो जाती है।

  • राज्यसभा में स्थिति: राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या 239 है, और बहुमत के लिए 120 सांसदों के मत की आवश्यकता होगी। NDA के पास यहाँ 132 सांसद हैं, जो इस शर्त को पूरा करने के लिए पर्याप्त हैं।

दो-तिहाई बहुमत: सबसे बड़ी चुनौती

संवैधानिक प्रक्रिया की दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण शर्त, दो-तिहाई बहुमत, NDA के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।

  • लोकसभा में चुनौती: लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 362 है। NDA के पास केवल 293 सांसद हैं, जिसका मतलब है कि विधेयक को पारित कराने के लिए उसे 69 अतिरिक्त सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी।

  • राज्यसभा में चुनौती: राज्यसभा में दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 160 है। NDA के पास यहाँ सिर्फ 132 सांसद हैं, जिसका मतलब है कि उसे 28 अतिरिक्त सांसदों की आवश्यकता होगी।

विपक्षी दलों का कड़ा विरोध

इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि सरकार के पास अकेले दम पर दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत नहीं है। दूसरी ओर, विपक्षी इंडिया गठबंधन इस विधेयक को 'काला कानून' बताकर इसका कड़ा विरोध कर रहा है। उनका तर्क है कि यह विधेयक राजनीतिक विरोधियों को फंसाने और पद से हटाने के लिए एक हथियार बन सकता है। अगर सरकार नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (BJD) और जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) जैसे दलों का भी समर्थन हासिल कर लेती है, तब भी यह दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा हासिल करना मुश्किल होगा। ऐसे में, बिना विपक्षी समर्थन के संसद से इस बिल का पारित होना लगभग नामुमकिन लगता है।

राज्यों की विधानसभाओं से अनुसमर्थन: एक आसान राह

संविधान संशोधन के लिए तीसरी और अंतिम शर्त, यानी आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं से अनुसमर्थन, NDA के लिए कोई बड़ी अड़चन नहीं है। भारत राज्यों का संघ है, इसलिए ऐसे विधेयकों के लिए यह शर्त जरूरी होती है। देश के आधे से ज्यादा राज्यों में NDA या उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैं, जिससे इस विधेयक को विधानसभाओं से पास कराना सरकार के लिए एक आसान काम होगा।

JPC में समाधान की संभावना

ऐसी चर्चा है कि संसद के शीतकालीन सत्र से पहले JPC इस बिल पर अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंप देगी। एक संभावना यह भी बन रही है कि अगर विपक्ष संयुक्त संसदीय समिति में शामिल होता है और सरकार उसके सुझावों को मान लेती है, तो विधेयक पर सहमति बन सकती है। उदाहरण के लिए, यदि यह सुझाव दिया जाता है कि न्यायिक हिरासत की बजाय सजा होने पर ही इस्तीफे को अनिवार्य बनाया जाए, तो विपक्षी दल इसका समर्थन कर सकते हैं। यह एक ऐसा समाधान हो सकता है, जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो।

वर्तमान में, सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के अनुसार, दो साल या उससे अधिक की सजा होने पर किसी भी सांसद या विधायक की सदस्यता स्वतः ही समाप्त हो जाती है और उसे पद से इस्तीफा देना पड़ता है। यह विधेयक इस प्रावधान को और सख्त बनाने का प्रयास है, लेकिन इसकी राह में खड़ी संवैधानिक और राजनीतिक चुनौतियां इसे एक जटिल और अनिश्चित भविष्य की ओर ले जा रही हैं।

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