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बिना परमिट दौड़ रही बसें, स्कूल वाहनों की अनदेखी: रीवा परिवहन विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल sawal Aajtak24 News |
रीवा - रीवा जिले में स्कूली बच्चों की सुरक्षा और आम नागरिकों की जान को लेकर परिवहन विभाग की लापरवाही एक गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है। जहां एक ओर प्रदेश सरकार ने स्कूल वाहनों की सघन जांच के निर्देश दिए हैं, वहीं दूसरी ओर जिले में न तो इन निर्देशों का पालन हो रहा है, न ही बिना परमिट बसों पर कोई ठोस कार्यवाही नजर आ रही है। मामले ने तब और गंभीर मोड़ ले लिया जब कई जानलेवा सड़क हादसों में बिना परमिट और ओवरलोड गाड़ियों की भूमिका सामने आई।
स्कूल बसों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी, जिम्मेदार कौन?
शासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार स्कूल बसों में फायर एग्जिट, फर्स्ट एड बॉक्स, प्रशिक्षित चालक और परिचालक, निर्धारित सीट संख्या के अनुरूप छात्र और वैध फिटनेस प्रमाणपत्र होना अनिवार्य है। मगर रीवा जिले के शहरी और ग्रामीण अंचलों में कई ऐसे वाहन रोजाना दर्जनों स्कूली बच्चों को ठूंसकर स्कूल पहुंचाते हैं, जिनके पास फिटनेस, बीमा या परमिट तक नहीं हैं। सूत्र बताते हैं कि परिवहन विभाग द्वारा कभी-कभार खानापूर्ति के लिए चेकिंग की जाती है, मगर उस दौरान भी कुछ रसूखदार वाहन संचालकों के खिलाफ कार्रवाई टाल दी जाती है।
बिना परमिट बसों की बेरोकटोक आवाजाही, गंभीर हादसों की जड़
खुलासा हुआ है कि रीवा जिले से प्रतिदिन सैकड़ों बसें देश के विभिन्न राज्यों—दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ आदि—की ओर यात्रियों को लेकर जाती हैं। इनमें से कई बसें वैध परमिट के बिना ही संचालित हो रही हैं। यात्रियों की मानें तो ये बसें हर महीने मोटी रकम देकर 'समझौता शुल्क' के तहत चलाई जाती हैं, जिसके पीछे विभागीय मिलीभगत की संभावना जताई जा रही है। पूर्व में ऐसी ही बिना परमिट बसों के अनियंत्रित दौड़ के चलते कई वाहन पलटने की घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें कई यात्रियों की जान भी जा चुकी है। पीड़ित परिवार आज भी न्याय की बाट जोह रहे हैं, परंतु जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई ठोस कार्यवाही अब तक नहीं हो सकी है।
‘उड़न दस्ते’ पर सवाल, अवैध वसूली और दमन के आरोप
जानकारी के मुताबिक परिवहन विभाग का ‘उड़न दस्ता’ जिले में बसों की जांच के नाम पर सक्रिय रहता है, परंतु इनकी कार्यशैली पर कई बार सवाल उठ चुके हैं। परिवहन कर्मचारियों के साथ कुछ कथित बाहरी तत्व और निजी व्यक्ति भी गाड़ियों पर सवार होते हैं, जो अवैध वसूली में लिप्त पाए गए हैं। वाहन चालकों का कहना है कि ‘नजराना’ न देने पर उनके साथ मारपीट, धमकी और वाहन सीज़ तक की नौबत आती है। इस संबंध में एक प्राइवेट कर्मचारी, जिसे ‘बेटा’ नाम से जाना जाता है, का नाम बार-बार सामने आ रहा है। बताया जाता है कि यह व्यक्ति चेक पोस्ट पर कथित वसूली का हिसाब-किताब रखता है और दलालों से वसूला गया धन उच्चाधिकारियों तक पहुंचाने का काम करता है।
प्रशासनिक चुप्पी और भ्रष्टाचार की जड़ में विभागीय संरक्षण?
रीवा जिले के नागरिकों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि जब तक जिला परिवहन कार्यालय की कार्यशैली की स्वतंत्र जांच नहीं होती और दोषियों पर कठोर कार्रवाई नहीं होती, तब तक हालात नहीं सुधरेंगे। कई संगठनों ने यह भी मांग की है कि बिना परमिट बसों से होने वाले हादसों की जवाबदेही तय करते हुए संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज किए जाएं।<रीवा जिले में स्कूली बच्चों की जान से लेकर आम नागरिकों की सुरक्षा तक, सभी कुछ उन हाथों में है जिन पर जवाबदेही का भार तो है, पर इच्छाशक्ति का अभाव है। यदि समय रहते शासन और प्रशासन ने सख्ती नहीं दिखाई, तो अगला बड़ा हादसा केवल एक खबर नहीं, एक त्रासदी बन जाएगा।