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रीवा और मऊगंज में नशे के खिलाफ अभियान: दिखावा या निर्णायक युद्ध? वर्षों से जमे थाना प्रभारियों और राजनीतिक संरक्षण पर गहराए सवाल saval Aajtak24 News |
रीवा/मऊगंज - रीवा जिले में हाल ही में दो ट्रकों से 5 क्विंटल गांजा पकड़े जाने की कार्रवाई को पुलिस ने भले ही एक बड़ी उपलब्धि बताया हो, लेकिन इस घटना ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह कार्रवाई नशा माफिया के खिलाफ एक निर्णायक जंग की शुरुआत है, या सिर्फ वरिष्ठ अधिकारियों को "संतुष्ट" करने का एक दिखावा? इस पूरे मामले में वर्षों से एक ही जगह पर जमे थाना प्रभारियों की भूमिका और उन्हें मिल रहे राजनीतिक संरक्षण पर भी गंभीर आरोप लग रहे हैं।
गांजा पकड़ा गया, पर क्या जड़ें अब भी अछूती हैं?
2 जुलाई 2025 को पुलिस ने उड़ीसा से रीवा लाई जा रही दो ट्रकों से भारी मात्रा में गांजा जब्त किया। यह कार्रवाई मुखबिर की सूचना पर की गई थी, जिसकी जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को पहले से थी। हालांकि, सवाल यह उठता है कि क्या कोई बड़ा माफिया केवल दो ट्रकों में ही इतना बड़ा माल सीधे सड़क मार्ग से भेजेगा, जहां पकड़े जाने का खतरा इतना अधिक हो? सूत्रों का कहना है कि यह खेप केवल एक "डिस्ट्रिब्यूशन चैनल" हो सकती है, जबकि असली और बड़ा भंडारण पहले ही सीधी और अन्य सीमांत जिलों में किया जा चुका होगा। माना जा रहा है कि यह पूरा नशा नेटवर्क प्रशासन, राजनीति और पुलिस तंत्र के भीतर तक फैला हुआ है, जिसकी जड़ें काफी गहरी हैं।
वर्षों से जमे थाना प्रभारी: क्यों नहीं हो रहा बदलाव?
रीवा शहर और आसपास के थाना क्षेत्रों में ऐसे दर्जनों थाना प्रभारी और पुलिसकर्मी आज भी पदस्थ हैं, जो 15 से 20 वर्षों से एक ही परिक्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनमें से कई के नाम कई बार विवादों में आ चुके हैं, फिर भी उनका स्थानांतरण (ट्रांसफर) नहीं किया गया।
क्या यह "विशेष राजनीतिक संरक्षण" का नतीजा है?
या क्या इनकी भूमिका माफिया संरचना के भीतर इतनी "सुविधाजनक" हो गई है कि इन्हें हटाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा?
अगर सरकार वाकई में नशे, खनिज, जमीन माफिया और ड्रग्स माफिया जैसे संगठित अपराधों पर लगाम लगाना चाहती है, तो सबसे पहले ऐसे पुराने अधिकारियों को उनके 'कंफर्ट ज़ोन' से बाहर निकालना होगा। कुछ थाना प्रभारियों का कार्यकाल केवल सिविल लाइन, विश्वविद्यालय चौराहा, समान जैसे शहर के पॉश इलाकों तक ही सीमित रहा है, और उन्हें कभी भी गांवों या संवेदनशील क्षेत्रों में तैनात नहीं किया गया। यह "काबिलियत" है या "सुविधा आधारित तैनाती" – यह सवाल उठना स्वाभाविक है।
राजनीतिक हस्तक्षेप और पुलिस तंत्र की मजबूरी
जिले में कुछ पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को ऐसे नेताओं का संरक्षण प्राप्त है, जो स्वयं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से माफिया से जुड़े हो सकते हैं। ये नेता अपने नजदीकी पुलिसकर्मियों को जिला मुख्यालय में ही टिकाए रखना चाहते हैं, ताकि न केवल "सुविधाजनक" पुलिसिंग हो सके, बल्कि माफिया गतिविधियों को भी नजरअंदाज किया जा सके।
पारदर्शिता और स्थानांतरण नीति की आवश्यकता
जहां लगातार संदेह और मिलीभगत के संकेत हों, वहां निष्पक्ष जांच और त्वरित स्थानांतरण आवश्यक है। पुलिस अधीक्षक और आईजी स्तर के अधिकारियों को चाहिए कि वे इन वर्षों से जमे अधिकारियों की संपत्तियों, उनके पूर्व व वर्तमान कार्यों और संबंधों की गहन जांच कराएं। ऐसे पुलिसकर्मियों को ग्रामीण अंचलों की जमीनी हकीकत से रूबरू कराने के लिए दूरदराज के थाना क्षेत्रों में भेजा जाना चाहिए, ताकि उनकी असली काबिलियत परखी जा सके।
आईजी की सख्ती और मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी
रीवा रेंज के आईजी गौरव सिंह राजपूत द्वारा की जा रही कार्रवाइयों ने पहली बार जनता में यह विश्वास जगाया है कि अब माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई संभव है। वे राजनीतिक दबावों के आगे झुकते नहीं दिख रहे हैं, लेकिन यही कारण है कि अब वे खुद राजनेताओं के निशाने पर भी आ सकते हैं। जनता के बीच यह चिंता गहराने लगी है कि क्या माफिया का विरोध करने वाला अधिकारी अपनी कुर्सी पर बना रह पाएगा।
गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पास है। ऐसे में यह केवल प्रशासनिक ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है कि सरकार उन नेताओं की पहचान करे, जो नशा माफिया, ट्रांसफर माफिया, कफ सिरप गिरोह और खनिज लुटेरों को संरक्षण दे रहे हैं। ऐसे नेताओं की गोपनीय निगरानी और गुप्त जांच अनिवार्य है, क्योंकि इनकी गतिविधियाँ न केवल शासन को भीतर से खोखला कर रही हैं, बल्कि सरकार की छवि को भी अपूरणीय क्षति पहुँचा रही हैं।
पुलिस प्रशासन की हालिया कार्रवाइयाँ स्वागत योग्य हैं, लेकिन यदि यह सिलसिला वहीं थम गया, जहां हर बार थम जाता है, तो यह सिर्फ "कागजी कार्रवाई" ही रह जाएगी।यदि वास्तव में रीवा को नशा मुक्त, भयमुक्त और माफिया मुक्त बनाना है, तो वर्षों से जमे अधिकारियों का स्थानांतरण, निष्पक्ष जांच और राजनीतिक गठजोड़ पर गहरी चोट अनिवार्य है। जनता अब केवल नारों में नहीं, बल्कि ठोस परिणामों में विश्वास रखती है।