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महाराष्ट्र की सियासत में नया 'दलित दांव': ठाकरे बंधुओं की मराठी एकता के बीच शिंदे ने मिलाया आंबेडकर के पोते से हाथ hath Aajtak24 News |
मुंबई - महाराष्ट्र की राजनीति में 'मराठी बनाम हिंदी' के विवाद और उद्धव ठाकरे व राज ठाकरे के दो दशक बाद एक मंच पर आकर 'मराठी एकता' का संदेश देने के बीच, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने एक बड़ा सियासी दांव चला है। शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने आज संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के पोते और रिपब्लिकन सेना के प्रमुख आनंदराज आंबेडकर के साथ औपचारिक गठबंधन की घोषणा की है। इस कदम को आगामी स्थानीय निकाय और नगर निगम चुनावों के मद्देनजर बेहद अहम माना जा रहा है।
आनंदराज आंबेडकर और शिंदे ने किया गठबंधन का ऐलान
एकनाथ शिंदे और आनंदराज आंबेडकर ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस नए गठजोड़ का ऐलान किया। शिंदे ने इसे 'बहुत खुशी का दिन' बताते हुए कहा कि बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना और बाबासाहेब अंबेडकर की रिपब्लिकन सेना जैसे 'सड़कों पर अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले दो संगठन' अब एक साथ आ रहे हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि वे मिलकर काम करेंगे और उनकी एकता का निश्चित तौर पर महाराष्ट्र की राजनीति पर असर दिखेगा। शिंदे ने अपनी और आनंदराज आंबेडकर की पहचान एक 'आम आदमी' और 'आम कार्यकर्ता' के रूप में बताई, जिनकी प्रतिबद्धता वंचितों और शोषितों के प्रति है। उन्होंने कहा कि उनके मुख्यमंत्री बनने का मार्ग बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान ने ही प्रशस्त किया था, जिसने आम आदमी, वंचितों और शोषितों की प्रगति सुनिश्चित की।
'शिवशक्ति-भीमशक्ति' का नारा और BMC चुनावों पर नजर
यह गठबंधन बाल ठाकरे और रामदास अठावले द्वारा सालों पहले दिए गए "भीम शक्ति और शिव शक्ति" के नारे को फिर से जीवित करेगा। शिंदे की कोशिश है कि इस नए समीकरण से मराठी वोटों के साथ-साथ दलित वोटरों को भी अपने पाले में लाया जा सके, जो अभी तक कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियों का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता रहा है। दोनों नेताओं ने ऐलान किया है कि शिवसेना और रिपब्लिकन सेना आगामी नगर निगम और जिला परिषद चुनाव मिलकर लड़ेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यह नई एकता राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच मराठी वोटरों के संभावित ध्रुवीकरण को रोकने के लिए एक रणनीतिक कदम के रूप में देखी जा रही है। यह गठबंधन शिंदे गुट की शिवसेना को दलित और वंचित तबकों में पैठ बनाने में मदद करेगा, वहीं रिपब्लिकन सेना को भी इससे बड़ा राजनीतिक मंच मिलेगा।
क्या गठबंधन मुख्यधारा की राजनीति में होगा कारगर?
आंबेडकरवादी विचारधारा के तहत यह साझेदारी न केवल राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेगी, बल्कि वंचित और पिछड़े वर्गों को एकजुट कर उन्हें आवाज़ देने का भी काम करेगी। अब देखना यह होगा कि यह गठबंधन आने वाले चुनावों में किस हद तक प्रभावशाली साबित होता है और महाराष्ट्र की राजनीति में क्या नया मोड़ लाता है। गौरतलब है कि भीमराव अंबेडकर के एक और पोते प्रकाश आंबेडकर भी राजनीति में सक्रिय हैं, जिनकी पार्टी बहुजन वंचित अघाड़ी है।