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आपातकाल पर शशि थरूर का बेबाक बयान: "संजय गांधी ने कराईं जबरन नसबंदियां, दिल्ली में हजारों हुए बेघर beghar Aajtak24 News |
नई दिल्ली - कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 1975 के आपातकाल को भारत के इतिहास का एक "काला अध्याय" बताते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। एक मलयालम दैनिक 'दीपिका' में प्रकाशित अपने हालिया लेख में थरूर ने आपातकाल के दौरान की क्रूरतापूर्ण घटनाओं को याद किया, खासकर संजय गांधी द्वारा चलाए गए "जबरन नसबंदी अभियान" और दिल्ली में हजारों लोगों के बेघर होने का जिक्र किया। थरूर ने चेतावनी दी है कि लोकतंत्र को कभी हल्के में नहीं लेना चाहिए और आपातकाल के सबक आज भी बेहद प्रासंगिक हैं।
क्रूरता और अत्याचार का दौर: संजय गांधी की भूमिका
शशि थरूर ने अपने लेख में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक के आपातकाल के "काले दौर" को विस्तार से बयां किया। उन्होंने कहा कि उस समय "अनुशासन और व्यवस्था" के नाम पर जो प्रयास किए गए, वे अक्सर "क्रूरतापूर्ण कृत्यों" में बदल गए, जिन्हें किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता।
थरूर ने इन कृत्यों के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने लिखा, "इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने जबरन नसबंदी अभियान चलाया जो इसका एक संगीन उदाहरण बन गया। पिछड़े ग्रामीण इलाकों में मनमाने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हिंसा और बल का इस्तेमाल किया गया।" यह अभियान परिवार नियोजन के नाम पर लोगों की स्वतंत्रता और शारीरिक अखंडता का घोर उल्लंघन था, जिसने लाखों लोगों के जीवन पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डाला।
नसबंदी अभियान के अलावा, थरूर ने शहरी क्षेत्रों में हुए अत्याचारों को भी उजागर किया। उन्होंने बताया, "नई दिल्ली जैसे शहरों में, झुग्गियों को बेरहमी से ध्वस्त और साफ़ किया गया। हज़ारों लोग बेघर हो गए। उनके कल्याण पर ध्यान नहीं दिया गया।" यह दिखाता है कि किस तरह आपातकाल के दौरान सरकारी मशीनरी ने नागरिकों के बुनियादी अधिकारों और मानवीय गरिमा की परवाह किए बिना काम किया।
"आज का भारत 1975 का भारत नहीं" - फिर भी सबक प्रासंगिक
थरूर ने अपने बयान में स्वीकार किया कि "आज का भारत 1975 का भारत नहीं है।" उन्होंने कहा, "आज हम अधिक आत्मविश्वासी, अधिक विकसित और कई मायनों में अधिक मज़बूत लोकतंत्र हैं।" हालांकि, उन्होंने तुरंत यह भी जोड़ा कि "फिर भी आपातकाल के सबक चिंताजनक तरीकों से प्रासंगिक बने हुए हैं।
उन्होंने लोकतंत्र को एक "अनमोल विरासत" बताते हुए कहा कि इसे "निरंतर पोषित और संरक्षित" किया जाना चाहिए। थरूर ने आगाह किया कि सत्ता को केंद्रीकृत करने, असहमति को दबाने और संवैधानिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने का लालच "कई रूपों में सामने आ सकता है।" अक्सर ऐसी प्रवृत्तियों को "राष्ट्रीय हित या स्थिरता के नाम पर" उचित ठहराया जा सकता है, जो बेहद खतरनाक है।
थरूर ने जोर देकर कहा कि आपातकाल भारत के लिए एक "कड़ी चेतावनी" है और "लोकतंत्र के रक्षकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए।" उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत में राजनीतिक बहस का स्तर अक्सर तीखा होता जा रहा है।
थरूर के बयानों का इतिहास और पार्टी में हलचल
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपनी पार्टी की लाइन से हटकर या ऐतिहासिक घटनाओं पर बेबाक टिप्पणी की है। हाल ही में, 'ऑपरेशन सिंदूर' के संबंध में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ विदेश यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने को लेकर भी वह अपनी ही पार्टी के नेताओं के निशाने पर आ गए थे। थरूर के ये बयान अक्सर कांग्रेस के भीतर एक नई बहस छेड़ देते हैं, क्योंकि वे पार्टी के पारंपरिक रुख से अलग माने जाते हैं। उनका ताजा लेख एक बार फिर कांग्रेस के लिए आंतरिक चर्चा का विषय बन सकता है।