उत्तराखंड में '5 हज़ार का नियम' बना कर्मचारियों का सिरदर्द: 23 साल पुराना फरमान, अब बवाल! bawal Aajtak24 News

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देहरादून - उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारी एक अजीबोगरीब सरकारी आदेश को लेकर लामबंद हो गए हैं। इस आदेश के तहत, उन्हें 5,000 रुपये से ज़्यादा की किसी भी ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए अपने वरिष्ठ अधिकारी से अनुमति लेनी होगी। हालाँकि, यह नियम लगभग 23 साल पुराना है, लेकिन हाल ही में 'आचरण नियमावली' का कड़ाई से पालन करने के लिए जारी एक आदेश के बाद अब इस पर ज़ोरदार विवाद खड़ा हो गया है।

क्या है नियम 22 और क्यों है इस पर आपत्ति?

दरअसल, विवाद की जड़ राज्य कर्मियों की आचरण नियमावली 2002 का नियम-22 है। यह नियम स्पष्ट करता है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी अपने बॉस (प्राधिकारी) को जानकारी दिए बिना 5,000 रुपये से ज़्यादा की संपत्ति नहीं ख़रीद सकता। इसमें चल संपत्ति (जैसे घरेलू उपकरण, वाहन के पुर्जे, मोबाइल फ़ोन) के साथ-साथ अचल संपत्ति, ज़मीन का पट्टा लेना या दान में संपत्ति अर्जित करना भी शामिल है। विवाद तब गहराया जब मुख्य सचिव आनंदबर्धन ने सोमवार को एक आदेश जारी कर सभी विभागीय प्रमुखों, सचिवों, विभागाध्यक्षों और ज़िलाधिकारियों को राज्य कर्मचारियों की आचरण नियमावली का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। इस आदेश में साफ़ कहा गया है कि अगर कोई कर्मचारी प्रतिमाह 5,000 रुपये से ज़्यादा की संपत्ति ख़रीदता है या अचल संपत्ति अर्जित करता है, तो उसे इसकी जानकारी पहले अपने प्राधिकारी को देनी होगी। नियम का पालन न करने पर आचरण नियमावली का उल्लंघन माना जाएगा।

दशकों पुराना नियम, क्यों उठ रहा है अब विरोध?

समस्या यह है कि यह नियमावली दशकों पुरानी है और इसमें अभी तक कोई संशोधन नहीं हुआ है। आमतौर पर, अफ़सर से लेकर कर्मचारी तक कोई भी इस नियम का पालन नहीं करता था क्योंकि यह अव्यावहारिक लगता था। लेकिन, नए आदेश ने कर्मचारियों को चौंका दिया है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि सातवें वेतनमान और मौजूदा महंगाई दर को देखते हुए 5,000 रुपये की यह सीमा तर्कसंगत नहीं है। आज के समय में मोबाइल फ़ोन, सामान्य घरेलू उपकरण या वाहन के पुर्ज़े जैसी आम ज़रूरतों की वस्तुओं की क़ीमत भी आसानी से इस सीमा से ज़्यादा हो जाती है। पर्वतीय कर्मचारी-शिक्षक संगठन के जनपद पदाधिकारियों ने प्रदेश अध्यक्ष सोन सिंह रावत से मिलकर इस नियम पर ऐतराज़ जताया। हरिद्वार के ज़िलाध्यक्ष ललित मोहन जोशी ने इसे "अव्यावहारिक" बताया और कहा कि यह नियम कर्मचारी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन करता है।

5,000 की सीमा बढ़ाई जा सकती है 1 लाख तक!

कर्मचारियों के बढ़ते विरोध के बीच, कार्मिक एवं सतर्कता विभाग के सूत्रों ने बताया है कि नियमावली में संशोधन का प्रस्ताव तैयार है। उम्मीद है कि जल्द ही इसे कैबिनेट में लाया जाएगा। इस संशोधन में 5,000 रुपये की राशि को बढ़ाकर एक लाख रुपये करने का प्रावधान किया गया है। यदि यह संशोधन पारित हो जाता है, तो कर्मचारियों को बड़ी राहत मिलेगी और यह नियम आज के आर्थिक परिवेश के अनुरूप हो पाएगा।

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