फर्जी अनुकंपा नियुक्तियों पर कमिश्नर का 'सर्जिकल स्ट्राइक': रीवा के जिला शिक्षा अधिकारी और योजना अधिकारी निलंबित Aajtak24 News

 

फर्जी अनुकंपा नियुक्तियों पर कमिश्नर का 'सर्जिकल स्ट्राइक': रीवा के जिला शिक्षा अधिकारी और योजना अधिकारी निलंबित Aajtak24 News

रीवा - शिक्षा विभाग में अनुकंपा नियुक्तियों के नाम पर चल रहे बड़े फर्जीवाड़े पर प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई की है. रीवा संभाग के कमिश्नर बी.एस. जामोद ने तत्काल प्रभाव से जिला शिक्षा अधिकारी सुदामा लाल गुप्ता और योजना अधिकारी (प्रभारी प्राचार्य, हाईस्कूल) अखिलेश मिश्रा को निलंबित कर दिया है. यह 'सर्जिकल स्ट्राइक' अधिवक्ता वी.के. माला की शिकायत के बाद हुई उच्च स्तरीय जांच का नतीजा है, जिसने कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से की गई अनियमित नियुक्तियों का पर्दाफाश किया है।

जांच में 5 नियुक्तियां निकलीं फर्जी, अधिकारियों की मिलीभगत उजागर

कमिश्नर कार्यालय द्वारा जारी आदेश क्रमांक 116/तीन/स्था./1/2025 के अनुसार, वर्ष 2024-25 के दौरान जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय रीवा द्वारा की गई कुल 37 अनुकंपा नियुक्तियों की गहन जांच की गई. इस जांच में 5 प्रकरणों में प्रस्तुत दस्तावेज पूरी तरह से फर्जी पाए गए। इनमें मृत्यु प्रमाण पत्रों की जालसाजी, ऑनलाइन सत्यापन में गड़बड़ी, और दस्तावेजों की जानबूझकर अनदेखी जैसे गंभीर तथ्य सामने आए हैं. कलेक्टर रीवा द्वारा प्रस्तुत जांच प्रतिवेदन के आधार पर, दोनों निलंबित अधिकारियों की सीधी जिम्मेदारी तय की गई, जिसके बाद कमिश्नर ने यह कड़ा निर्णय लिया।

एडवोकेट वी.के. माला की जनहित याचिका बनी कार्रवाई की नींव

इस पूरे घोटाले की नींव अधिवक्ता वी.के. माला की एक शिकायत से पड़ी थी। उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय रीवा और इसके अधीनस्थ कर्मचारियों पर फर्जी दस्तावेजों की साजिश रचकर अनुकंपा नियुक्तियां देने का गंभीर आरोप लगाया था। कमिश्नर कार्यालय को भेजे गए अपने आवेदन में, वी.के. माला ने मृत कर्मचारियों के परिवारों के साथ हुए अन्याय और फर्जी लाभार्थियों को मिली नियुक्तियों की सटीक जानकारी सहित ठोस प्रमाण प्रस्तुत किए थे। इन प्रमाणों ने प्रशासन को एक उच्च स्तरीय जांच शुरू करने के लिए मजबूर किया, जिसके परिणामस्वरूप यह बड़ी कार्रवाई सामने आई है।

जवाबदेही से नहीं बच पाए शीर्ष अधिकारी: प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए

नियमानुसार, दोनों निलंबित अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे, लेकिन उनके जवाब असंतोषजनक पाए गए. इसके बाद, कमिश्नर ने उन्हें मध्यप्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 के तहत कर्तव्यपालन में लापरवाही, नियमों की अवहेलना और सेवा आचरण उल्लंघन का दोषी मानते हुए निलंबित कर दिया। निलंबन की अवधि में, दोनों अधिकारियों को संयुक्त संचालक, लोक शिक्षण कार्यालय, रीवा में उपस्थित रहना होगा और वे केवल जीवन निर्वाह भत्ता के पात्र होंगे। सूत्रों के अनुसार, यदि आरोप प्रमाणित होते हैं, तो उनकी सेवा समाप्ति और आपराधिक मामला दर्ज होने की संभावना भी प्रबल है. कमिश्नर कार्यालय ने न्यायालयीन प्रक्रिया के लिए आवश्यक दस्तावेज संबंधित अधिकारी को भेज दिए हैं।

शिकायत से जुड़े दस्तावेजों में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि कुछ पात्र अभ्यर्थियों की नियुक्तियां जानबूझकर रोकी गईं, जबकि अपात्र लोगों को राजनीतिक संरक्षण और घूसखोरी के बल पर नियुक्ति पत्र जारी किए गए। इस पूरी भर्ती प्रक्रिया को एक सुनियोजित घोटाला बताया गया है, जिसमें शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी सीधे तौर पर संलिप्त पाए गए हैं। जनमानस, अभिभावकों, वंचित अभ्यर्थियों और शिक्षकों की ओर से अब केवल निलंबन को पर्याप्त नहीं माना जा रहा है। वे सभी दोषियों की सेवा से बर्खास्तगी, एफआईआर दर्ज करने और पात्र आवेदकों की नियुक्ति की मांग कर रहे हैं. शिकायतकर्ता अधिवक्ता वी.के. माला ने प्रशासन से यह भी अनुरोध किया है कि भविष्य में इस प्रकार की अनुकंपा योजना का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए एक स्थायी निगरानी तंत्र स्थापित किया जाए।


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