रीवा के संजय गांधी अस्पताल में गैंगरेप: स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल, उपमुख्यमंत्री के क्षेत्र में लचर कानून-व्यवस्था! Aajtak24 News


रीवा के संजय गांधी अस्पताल में गैंगरेप: स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल, उपमुख्यमंत्री के क्षेत्र में लचर कानून-व्यवस्था! Aajtak24 News

रीवा - विंध्य क्षेत्र के सबसे बड़े अस्पताल, संजय गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल, रीवा में एक नाबालिग मरीज की पुत्री के साथ हुए गैंगरेप की घटना से पूरा रीवा जिला शर्मसार हो गया है। यह घटना अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक उदासीनता और स्वास्थ्य मंत्रालय संभाल रहे स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

पूर्व मंत्री के सपनों का अस्पताल बना 'गुंडों का अड्डा'?

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री पंडित श्रीनिवास तिवारी ने जिस दूरदर्शिता के साथ इस 800 बिस्तरों वाले अस्पताल की कल्पना की थी कि विंध्य के मरीजों को इलाज के लिए कहीं भटकना न पड़े, वह कल्पना आज तार-तार होती दिख रही है। वर्तमान में, मध्य प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रभारी राजेंद्र शुक्ला, जो स्वयं रीवा विधानसभा से विधायक हैं, उनके गृह क्षेत्र में आए दिन संजय गांधी अस्पताल या निजी अस्पतालों में गुणवत्ताहीन दवाओं, डॉक्टरों की लापरवाही, मरीजों से मारपीट जैसी विसंगतियां सामने आ रही हैं। इस घटना ने अस्पताल को "मवाली गुंडों का अड्डा" जैसा बना दिया है।

सुरक्षा पर करोड़ों खर्च, फिर भी लचर व्यवस्था

संजय गांधी अस्पताल कई वर्षों से संचालित है और हर साल सुरक्षा व्यवस्था पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। अस्पताल परिसर में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं, इसके बावजूद आए दिन ऐसी गंभीर घटनाएं घटित हो रही हैं। यह स्पष्ट रूप से प्रशासनिक उदासीनता और लचर व्यवस्था का परिणाम है। जहां डॉक्टर को भगवान का रूप माना जाता है, वहीं मरीज यहां उचित इलाज के लिए भी तरस रहे हैं और निजी अस्पतालों में जाने को मजबूर हो रहे हैं।

गैंगरेप मामले में गंभीर जांच बिंदुओं की मांग

इस जघन्य गैंगरेप की घटना के बाद कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं, जिन पर गहन जांच की आवश्यकता है:

  • क्या आरोपियों को बचाने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी डॉक्टर ने सहयोग किया?
  • क्या डॉक्टरों ने घटना की जानकारी तुरंत पुलिस को दी, या समाचार पत्रों और पुलिस अधिकारियों के संज्ञान लेने के बाद कार्रवाई प्रारंभ हुई?
  • ऐसी गंभीर घटना के बाद पीड़िता को किसने और किन परिस्थितियों में छुट्टी दी? छुट्टी देने वाले व्यक्तियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।
  • क्या इस तरह की और भी घटनाएं पहले घटित हुई हैं जिन्हें दबाया गया है?
  • यदि आज समाचार और मोबाइल/यूट्यूब चैनल न होते, तो क्या पीड़िता को निष्पक्ष न्याय मिल पाता?

जनप्रतिनिधियों की चुप्पी और जनता की उम्मीदें

रीवा के विकास की गाथा लिखने वाले जनप्रतिनिधियों की इस घटना पर चुप्पी ने जनता को निराश किया है। जनता ने जिस एकतरफा समर्थन से उन्हें चुना है, क्या उन्हें उनसे यही उम्मीद थी? सामाजिक कार्यकर्ता बीके माला ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि जिला कलेक्टर, रीवा पुलिस अधीक्षक और स्वास्थ्य विभाग को आगे आकर इस नाबालिग लड़की के साथ हुए अन्याय की लड़ाई लड़नी चाहिए। उन्होंने इस घटना को कोलकाता की एक समान घटना की याद दिलाते हुए न्याय की मांग की है। अब देखना यह है कि यह लड़ाई किस मुकाम तक पहुंचती है और क्या पीड़िता को वास्तव में न्याय मिल पाता है, या सामाजिक बंधन के कारण यह मुद्दा दब जाता है।

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