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धर्म परिवर्तन करने वालों का अनुसूचित जाति का दर्जा समाप्त: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी timparni Aajtak24 News |
अमरावती - देशभर में धर्म परिवर्तन के मामलों के बीच, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अनुसूचित जाति (एससी) के दर्जे से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि धर्म परिवर्तन करने पर अनुसूचित जाति का दर्जा समाप्त हो जाएगा और ऐसे लोगों को इस श्रेणी के तहत मिलने वाले लाभ नहीं मिलेंगे। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति एन हरिनाथ की एकल पीठ ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले की सुनवाई करते हुए की। अदालत ने इस मामले को खारिज करते हुए कहा कि जो व्यक्ति स्वेच्छा से अपना धर्म परिवर्तित कर लेता है, वह धर्म परिवर्तन के क्षण से ही इस अधिनियम के तहत प्रदत्त सुरक्षा का दावा नहीं कर सकता।
पूरा मामला गुंटूर जिले के कोथापलेम का है, जहां पादरी चिंतादा आनंद ने अक्कला रामी रेड्डी और पांच अन्य के खिलाफ जातिसूचक गाली देने और दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस ने इस मामले में एससी/एसटी मामलों की विशेष अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया था। इसके खिलाफ रेड्डी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर आरोपपत्र रद्द करने और विशेष अदालत में कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ता के वकील फणी दत्त ने अदालत में तर्क दिया कि शिकायतकर्ता आनंद ने स्वयं स्वीकार किया है कि वह पिछले 10 वर्षों से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है और उसने स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन किया है। उन्होंने यह भी कहा कि ईसाई धर्म जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं देता है और संविधान में अन्य धर्मों में जाति व्यवस्था का कोई उल्लेख नहीं है। ऐसे में, हिंदू धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण करने वालों को अनुसूचित जाति नहीं माना जा सकता।
न्यायमूर्ति एन हरिनाथ ने इस तर्क से सहमति जताते हुए कहा कि जब शिकायतकर्ता ने खुद कहा है कि वह पिछले 10 वर्षों से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है, तो पुलिस को उसके खिलाफ एससी/एसटी अधिनियम के तहत कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि एससी/एसटी अधिनियम का उद्देश्य उन समुदायों के व्यक्तियों की रक्षा करना है जो इस श्रेणी से संबंधित हैं, न कि उन लोगों की जो दूसरे धर्मों में धर्मांतरित हो गए हैं। अदालत ने यह भी कहा कि केवल इस आधार पर एससी/एसटी अधिनियम लागू करना कि शिकायतकर्ता का जाति प्रमाण पत्र अभी तक रद्द नहीं किया गया है, एक वैध आधार नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने इस मामले में एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग मानते हुए अक्कला रामी रेड्डी और अन्य के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की यह टिप्पणी धर्म परिवर्तन और अनुसूचित जाति के दर्जे के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण कानूनी दृष्टिकोण सामने रखती है, जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।