मध्य प्रदेश भाजपा में अंदरूनी कलह: विधायकों का 'बागी' तेवर, नड्डा को करना पड़ा हस्तक्षेप hastchep Aajtak24 News


मध्य प्रदेश भाजपा में अंदरूनी कलह: विधायकों का 'बागी' तेवर, नड्डा को करना पड़ा हस्तक्षेप hastchep Aajtak24 News 

भोपाल - मध्य प्रदेश में सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इन दिनों एक अप्रत्याशित और गंभीर आंतरिक संकट का सामना कर रही है। राज्य में एक के बाद एक कई भाजपा विधायक सार्वजनिक मंचों पर अपनी ही सरकार और स्थानीय प्रशासन के खिलाफ खुलकर आवाज उठा रहे हैं, जिससे पार्टी के लिए लगातार शर्मनाक और असहज स्थिति पैदा हो रही है। यह असंतोष इतना गहरा हो चुका है कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को खुद हस्तक्षेप करना पड़ा है, लेकिन इसके बावजूद 'बागी' सुर थमते नजर नहीं आ रहे।

नड्डा का 'अंकुश' संदेश: क्या लगेगी अनुशासनहीनता पर लगाम?

'द इकॉनोमिक टाइम्स' की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, जेपी नड्डा ने मध्य प्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा को फोन कर ऐसे सभी विधायकों को कड़ा संदेश देने को कहा है, जो अपनी ही सरकार की सार्वजनिक आलोचना कर रहे हैं। यह कदम पार्टी में बढ़ती अनुशासनहीनता पर लगाम कसने और संगठन के भीतर एकता बनाए रखने की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। हाल ही में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर कुछ मंत्रियों द्वारा की गई विवादित टिप्पणी की घटना ने भी शीर्ष नेतृत्व की चिंताएं बढ़ा दी थीं, जिसके बाद यह हस्तक्षेप और भी आवश्यक हो गया। पिछले कुछ महीनों में विधायकों की लगातार सार्वजनिक बयानबाजी ने केंद्रीय नेतृत्व को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या राज्य इकाई पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ रही है।

खुलेआम सरकार और प्रशासन पर हमले: कुछ प्रमुख मामले

पार्टी के भीतर यह असंतोष किसी एक या दो विधायक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक समस्या के रूप में उभरा है, जिसमें कई कद्दावर नेता भी शामिल हैं:

  • गुना से विधायक पन्ना लाल शाक्य: इन्होंने हाल ही में मीडिया के सामने आरोप लगाया कि स्थानीय गुना प्रशासन उन्हें गंभीरता से नहीं लेता और केवल 'चुनिंदा लोगों' की बात सुनी जाती है। शाक्य ने तो यहां तक दावा किया कि वे अनुसूचित जाति (SC) वर्ग से आते हैं, इसलिए उनकी आवाज को दबाने का प्रयास किया जाता है। यह आरोप सीधे तौर पर प्रशासन में भेदभाव की ओर इशारा करता है।
  • शिवपुरी से विधायक देवेंद्र जैन: इन्होंने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर स्थानीय प्रशासन और एक एसडीएम पर सीधे तौर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। इनकी शिकायत के बाद राज्य सरकार ने संबंधित एसडीएम को तुरंत हटा दिया, लेकिन जैन चाहते हैं कि मामले में और कड़ी कार्रवाई हो और भ्रष्टाचार में लिप्त अन्य अधिकारियों पर भी गाज गिरे।
  • पिछोर के विधायक प्रीतम लोधी: ये पार्टी के लिए एक निरंतर सिरदर्द बने हुए हैं। लोधी लगातार स्थानीय प्रशासन और प्रभारी मंत्री के खिलाफ मुखर रहे हैं। पार्टी की ओर से उन्हें पहले भी नोटिस जारी किया जा चुका है, लेकिन इन चेतावनियों का उन पर कोई खास असर होता नहीं दिख रहा है।
  • सोहागपुर विधायक विजयपाल सिंह और मऊगंज के विधायक प्रदीप पटेल: इन दोनों विधायकों ने भी विभिन्न स्थानीय मुद्दों पर राज्य प्रशासन की सार्वजनिक रूप से आलोचना की है। प्रदीप पटेल ने तो सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें पुलिस से धमकियां मिल रही हैं, जो सीधे तौर पर कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
  • राज्य के पूर्व गृह मंत्री और खुरई विधायक भूपेंद्र सिंह: इन्होंने शुक्रवार को भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के नेताओं पर बेहद गंभीर आरोप लगाए। भूपेंद्र सिंह ने दावा किया कि कुछ लोग 'तंत्र-मंत्र' के जरिये उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं, जिसका मकसद उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास प्रयासों को बाधित करना है। यह बयान भाजपा के भीतर की गहरी दरारों और व्यक्तिगत दुश्मनी को भी दर्शाता है।

वरिष्ठ नेताओं से संबंध और कार्रवाई की दुविधा

मध्य प्रदेश भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि इन कई असंतुष्ट नेताओं के पार्टी के कुछ वरिष्ठ और प्रभावशाली नेताओं से गहरे संबंध हैं। यही वजह है कि प्रदेश नेतृत्व के लिए इन विधायकों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई करना मुश्किल हो रहा है। ऐसे किसी भी कठोर कदम से पार्टी के भीतर बड़े पैमाने पर विवाद पैदा होने और गुटबाजी बढ़ने का डर है, जिससे आगामी चुनावों में पार्टी की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं। हालांकि, पार्टी ने पूरी तरह से आंखें नहीं मूंद रखी हैं। प्रीतम लोधी को नोटिस देना और देवेंद्र जैन की शिकायत पर एसडीएम को हटाना, ये कुछ ऐसे कदम हैं जो पार्टी ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए उठाए हैं।

यह स्थिति भाजपा के लिए एक बड़ी संगठनात्मक और राजनीतिक चुनौती पेश कर रही है। खासकर, जब राज्य में अगले विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो रही हैं, ऐसे में पार्टी नेतृत्व को इन अंदरूनी कलहों को शांत करने और संगठन में अनुशासन व एकता बहाल करने के लिए एक बेहद संतुलित और प्रभावी रणनीति अपनानी होगी, ताकि राज्य में उसकी सत्ता पर पकड़ कमजोर न पड़े। क्या जेपी नड्डा का हस्तक्षेप इन 'बागी' तेवरों पर लगाम लगा पाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

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