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यातायात व्यवस्था चरमराई, कर्मचारी अपने बीट पर ड्यूटी नहीं कर रहे kar rahe Aaj Tak 24 News |
शहडोल - शहर की यातायात व्यवस्था इस समय बहुत खराब हो गई है कर्मचारी अपने बीट पर ड्यूटी नहीं कर रहे हैं यहां वहां पान ठेले चाहे ले या किराना दुकान में खड़े रहते हैं बस वह टाइम पास करते हैं उन्हें आम आदमी से कोई मतलब नहीं है कभी भी देखा जा सकता है बता दे जो है मोबाइल चलाते नजर आएंगे मोबाइल के बगैर जो है उनका काम नहीं चलता है अगर कहा जाता है कि आप ड्यूटी क्यों नहीं कर रहे तो जवाब में कहा जाता है कि हम अपनी ड्यूटी ही कर रहे हैं वाहनों का जमघट इतना लग जाता है कि जाम लग जाता है लेकिन इन से कोई मतलब नहीं मतलब तब होता है जब अखबारों में समाचार छपते हैं तब इनकी नींद खुलती है बाला अक्षरा का सायरन बजाकर भी कर्मचारी और खट्टा करके दिखाते हैं कि हम बड़ी मुस्तैदी के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं इसके बाद फिर वही रवैया एक-दो दिन सही रहते हैं उसके बाद फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगते हैं और ज्यादा इनको गुस्सा आती है तो यह फिर हेलमेट सवारी कागज के नाम पर समन शुल्क की वसूली करने में लग जाते हैं बाकी समय शहर के किनारे लगे रहते हैं शहर से कोई मतलब नहीं है सिग्नल भी इस समय बंद है सिग्नल को पता नहीं क्या हो जाता है कि 4 दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात पूर्व में कहा गया था कि कुछ लेनदेन का मामला है निपट गया है इसके बाद सिग्नल चालू हुए लेकिन कुछ दिनों बाद फिर बंद हो गए एक बार का नहीं बार-बार का है 30 कर्मचारी हैं यातायात में कहां जा रहा है लेकिन कभी 30 कर्मचारियों की संख्या एक साथ जो है नहीं दिखती है एक साथ दिखे भी कहां से 9 पॉइंट बनाए गए हैं 9 पॉइंट में भी कर्मचारी नहीं दिखते ऐसा 2 घंटे रहते हैं अगर रहते भी हैं तो चाय पान के ठेले में नजर आएंगे चाहे वह बस स्टैंड हो गांधी चौक हो राजन टॉकीज हो इंदिरा चौक हो नया बस स्टैंड हो परमट हो नटराज होटल के पास हो या कहीं भी इनकी ड्यूटी ऐसी ही चलती रहती है आला अफसर जो है कभी ध्यान नहीं देते हैं ध्यान देते भी हैं तो स्वयं अपने आपको विभागीय लोगों के साथ ही देखे जा सकते हैं इसके बाद भी कई बार समाचार पत्रों में छपने के बाद लगातार कार्यवाही ना होना यह निसंदेह दिखता है कि इन्हें आम आदमी से कोई मतलब नहीं है जबकि इनकी सुरक्षा से ही आम आदमी की सुरक्षा है तीन सवारी हो या चार सवारी हो आती जाती रहती हैं पूरे दुकानों के सामने वाहनों का जमघट रहता है पूर्व में पट्टी बनाई गई थी पट्टी के अंदर वाहनों को रखा जाए लेकिन वाहनों को पट्टी से बाहर रखा जाता है पूर्व में जो है चयन की कार्यवाही की जा रही थी रसीद लेकर घूम भाग रहे थे कर्मचारी लेकिन इस समय वह भी नहीं है गांधी चौक में अलाउंस होता था कि वाहनों को व्यवस्थित करें वह भी बंद हो गया है मतलब कहा जा सकता है कि सारी व्यवस्थाएं बंद कर दी गई है आम आदमी अपने हिसाब से चले अपने हिसाब से दुकानों के सामने वाहन खड़ा करें कर्मचारी देखते रहते हैं लेकिन दुकानदारों को कुछ नहीं कहते हैं पूरा गांधी चौक के दाएं बाएं इतनी जमघट रहती है वहां से लेकर के प्रमाण वाहनों का दुकानदार दुकान के बाहर सामान रखे हुए हैं नगरपालिका भी कोई ध्यान नहीं देती है दोनों विभाग के पचड़े में मिलकर आम आदमी पूछ रहा है अगर दोनों विभाग अपने दायित्वों का निर्वहन करें तो शायद व्यवस्थित हो रहा है वाहनों का जमघट और जाम की स्थिति जाम लगने के कारण वाहनों का टक्कर होना स्वाभाविक हो जाता है ऐसे लोग टकरा जाते हैं लेकिन उससे भी कोई मतलब नहीं है अब देखना यह है कि यातायात एवं नगरपालिका शहर को व्यवस्थित कर सकते हैं समाचार पढ़ने के बाद 1-2 दिन के लिए जो है व्यवस्थित करेंगे और उसके बाद फिर पुनः उसी व्यवस्था में आ जाएंगे।