*छह माह में भी नहीं हुआ गणवेश व सायकिलों का वितरण*
*अतिथि शिक्षक भी पढ़ाने नहीं आए, छमाही परीक्षाएं होने लगीं*
छह माह में भी नहीं हुआ गणवेश व सायकिलों का वितरण | chah mah me bhi nhi huaa |
शहडोल। सरकारी स्कूलों का भर्रा बढ़ता जा रहा है। कभी अव्यवस्थाएं शासन स्तर से उत्पन्न की जातीं हैं तो कभी स्थानायी प्रशासन स्तर से। स्कूलों में न ढंग से पढ़ाई होती है न सरकारी योजनाओं का समुचित ढंग से लाभ मिलता है। सारा कार्य केवल कोरम पूरा करने के लिए ही किया जाता है। स्कूलों में मध्यान्ह भोजन का वितरण किस तरह होता है यह सर्वविदित ही है। इस वर्ष अभी तक बच्चों को न तो गणवेश मिला और न सायकिलोंं का वितरण हुआ, जबकि शिक्षा का आधा सत्र बीत गया है और छमाही परीक्षाएं ली जाने लगी हैं। जिले में प्राथमिक व माध्यमिक स्तर की 21 सौ से भी अधिक स्कलें हैं जिनमें लगभग 2 लाख बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इतने बच्चों को आज भी नए गणवेश का इंतजार है। महीनों पहले अतिथि शिक्षकों की भर्ती हुई पर पढ़ाई लिखाई अभी तक बंद ही है। बच्चों को पढ़ाने वाला कोई नहीं।
*सायकिल वितरण अधर में*
स्कू लों का आधा सत्र बीत गया है पर सायकिलों का पता नहीं है। शासन द्वारा बच्चों को सायकिलों का वितरण इसलिए किया जाता है ताकि वे सुविधा से स्कूल आ जा सकें। लेकिन इस वर्ष अभी तक सायकिलें स्कूलों में नहंी पहुंची हैं। बतया जाता है कि अभी तक शासन ने आदेश नहीं दिया है। ज्ञातव्य है कि स्कूलों का संचालन अधिकांशत: मार्च तक ही हो पाता है जिसे आने में मात्र ढाई माह ही शेष हैं। यह समय भी प्रक्रियाओ में बीत जाएगा। तब तक वार्षिक परीक्षाएं आ जाएंगी क्या तब सायकिलें बंटेगी? और बंटेगी भी तो बच्चों को क्या लाभ होगा? उन्हे स्कूल तो पैदल ही आना जाना पड़ा।
*गणवेश का इंतजार*
गणवेश वितरण भी अधर में लटका हुआ है। स्कूली बच्चे छह माह से ड्रेस का इंतजार कर रहे हैं लेकिन अभी तक उन्हे पुराने फटे ड्रेस को सिल कर ही स्कूल आना पड़ता है। बताते हैं कि पहले जानकारी मिली थी कि शासन स्वसहायता समूहों को काम सौेपने वाला था और उन्ही के खाते में रकम दी जाने वाली थी लेकिन न तो स्वसहायता समूहों को राशि दी गई और न बच्चों के खाते में ही राशि भेजी गई। इस तरह अभी तक ड्रेस वितरण भी अधर में लटका है। बीते वर्षों में भी काफी विलंब से ड्रेस वितरण हो पाया था। दूसरी ओर स्वसहायता समूहों का कहना है कि न तो समय से निर्देश मिलता है और न समय से राशि मिलती है।
*पढ़ाई लिखाई बिना परीक्षा*
जिले की दर्जनों स्कूलें ऐेसी हैं जहां शिक्षकों की बहुत कमी हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए शासन द्वारा अतिथि शिक्षकों की भर्ती की गई थी। कई महीने बीत गए, साल बदल गया फिर भी शिक्षक स्कूलों में नहीं पहुंच सके। न शिक्षकों की आपूर्ति हुई न ढंग से पढ़ाई हुई लेकिन छमाही परीक्षाएं होने लगीं। परीक्षा के लिए बच्चों की तैयारी किस स्तर की हुई होगी यह सहज ही अनुमानित है। बच्चों को कोई पाठ्यक्रम पूरा कराने वाला नहीं वे भला परीक्षा के हिसाब सेे कैसे तैयारी कर सकते हैं। सरकारी स्कूलों का भर्रा देखते ही बनता है।
*इनका कहना है*
सायकिलों का वितरण शुरू किया गया है, बुढ़ार और गोहपारू की कई स्कूलों में वितरण कराया गया है। अभी 6 हजार से अधिक सायकिलें आने वाली हैं।
*फूल सिंह मारपाची*
*डीइओ, शिक्षा विभाग*
*शहडोल*