संसारी रिश्ते स्वार्थ से भरे हुये है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय | Sansari rishte swarth se bhare huye hai

संसारी रिश्ते स्वार्थ से भरे हुये है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

संसारी रिश्ते स्वार्थ से भरे हुये है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

राजगढ़/धार (संतोष जैन) - श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा पाताललोक से नागराज धरणेन्द्र देव से ऋषभदेव भगवान के पुत्र (पालकपुत्र) नमि-विनमि द्वारा वैताढ्य पर्वत पर ले जायी गयी वहां पूजा अर्चना की गयी । वहां से सौधर्म इन्द्र इन्द्रलोक ले गये जहां उन्होंने पूजा की । फिर वहां से प्रभु प्रतिमा देवलोक में ले जाकर सूर्यदेव ने 54 लाख वर्षो तक प्रभु की पूजा भक्ति की । जिनशासन के महान आचार्य भगवन्त श्री रत्नाकरसूरीश्वरजी म.सा. ने रत्नाकर पच्चीसी में 25 गाथाओं की रचना करते हुये प्रभु की स्तुति में कहा कि जिस प्रकार बच्चा मॉं की गोद में लात मारता है, बालक्रीड़ा करता है और माता पिता उस गलती को नजरअंदाज कर देते है उसी प्रकार प्रभु मैं अज्ञानी बालक हूॅं और संसार में रह रहा, नादान हूॅं गलतियां मुझसे होना स्वाभाविक है । आप तारक तत्व है अतः मेरी गलतियों को क्षमा करके मेरी आत्मा को भव से तारने की कृपा करें । प्रभु कहते है कि संसार के सारे रिश्ते नाते स्वार्थ से भरे पड़े है । अपनी आंखों से अच्छे दृश्य देखने से मन में अच्छे भाव उत्पन्न होगें । इसलिये हमेशा अच्छे दृष्यों का अवलोकन करें, बूरे दृष्यों का अवलोकन आत्मा को अधोलोक में ले जाते है । उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कही । आपने बतलाया कि हर घटना इंसान को सीख देती है । शिक्षा कही से भी मिल सकती है । श्रेणिक राजा को जेल में बंद करके रोज सौ कोड़े मारने वाले कोणिक पुत्र का ह्रदय परिवर्तन अपनी माता चेलना रानी से पिता द्वारा दिये गये अभयदान के उपकार की सत्यता जानने पर हुआ था । मगर जब सत्यता पता लगी तबतक श्रेणिक राजा परलोक सिधार गये थे । तब कोणिक को पछतावा हुआ । ज्ञानी कहते है कि संसार में तेरा कुछ भी नहीं है यहां सब धन सम्पत्ति ओर स्वार्थ से भरे हुये रिश्ते है । अपात्र को कभी भी विद्या नहीं देना चाहिये क्योंकि वो विद्या का दूरुपयोग करके विनाश कर सकता है । जो वस्तु सरलता से मिल जाती है लोग उसकी कदर नहीं करते है । हमारे जिनशासन में व्यक्ति विशेष की पूजा का महत्व नहीं दिया गया है । हमारे यहां महावीर के वेश ओर उनके त्याग की पूजा की जाती है । हमें प्रभु से याचना नहीं प्रार्थना करना चाहिये । याचना में स्वार्थ होता जबकि प्रार्थना निस्वार्थ होती है । प्रवचन में मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा. भी उपस्थित थे ।

संसारी रिश्ते स्वार्थ से भरे हुये है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

राजगढ़ श्रीसंघ में मुनिश्री की प्रेरणा से नियमित प्रवचन वाणी का श्रवण कर श्रीमती पिंकी सुमितजी गादिया राजगढ़ ने अपनी आत्मा के कल्याण की भावना से महामृत्युंजय तप प्रारम्भ किया आज उनका 17 वां उपवास चल रहा है । आज सोमवार को श्री गौतमस्वामीजी के खीर एकासने का आयोजन श्री अनिलकुमार मनोहरलालजी खजांची परिवार की ओर से रखा गया है । नमस्कार महामंत्र की आराधना मुनिश्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. की निश्रा में 14 अगस्त से 22 अगस्त तक श्रीसंघ में करवायी जावेगी ।

श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ के तत्वाधान में प.पू. गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का पुण्योत्सव 11 से 18 सितम्बर तक श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में मनाया जावेगा ।


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