पुरुषार्थ के साथ धर्म आराधना करें तभी पुण्य बढेगा: मुनि पीयूषचन्द्रविजय
राजगढ़/धार (संतोष जैन) - भगवान महावीर स्वामी ने कहा कि जबतक शरीर पीड़ारहित है तबतक इंसान को धर्म आराधना कर लेना चाहिये । शरीर में बुढ़ापा आने के बाद धर्म आराधना करना सम्भव नहीं होता है । धर्म मार्ग पर पहुंचने के लिये शक्ति का होना जरुरी होता है । अस्वस्थता और बुढापे के समय धर्म आराधना शक्ति की कमी होने के कारण नहीं हो पाती है । ‘‘पहला सुख निरोगी काया‘‘ । मानव के हाथों में एक सेकन्ड का भी समय नहीं है । जो होना है वह होकर रहेगा, होनी को कोई भी टाल नहीं सकता है । निकाचित कर्मो के बंध कभी भी छुटते नहीं है । इसे मानव तो क्या तीर्थंकर परमात्मा को भी भोगना पड़ता है । भगवान महावीर का जन्म और दीक्षा क्षत्रिय कुंड में हुई थी । जिस प्रकार गाय बेल दिन भर इधर उधर घुमकर शाम को अपने नियत स्थान पर वापस आ जाते है पर इंसान एक बार भटक जाये तो वापस अपने घर मुश्किल से आता है । जैसे कर्म करेगें कर्मो के अनुरुप ही फल की प्राप्ति होगी । धर्म आराधना में समाधि भाव के साथ कष्ट सहन करने की शक्ति मिलती है । उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने राजेन्द्र भवन में कही । आपने बतलाया कि पुण्य की कमी के कारण संकट आता है । पुण्य की अभिवृद्धि के लिये पुरुषार्थ के साथ धर्म आराधना करना चाहिये । पुण्यशाली को साधन सुविधाऐं दोनों मिलती है । पुण्य की कमी से रोगों की उत्पत्ति होती है । पुण्य कमजोर हो तो धन दोलत साधन सुविधा होने के बाद भी इंसान उसका उपभोग नहीं कर पाता है । संत साधक और समदृष्टि होता है । संत में राग द्वेष नहीं होता है वे इससे मुक्त होते है । वे हमेशा सही मार्ग की और जाने के लिये प्रेरित करते है । सच्चे गुरु और संत वो होते है जो भक्त के चित्त पर ध्यान देते है और उसकी आत्मा को दुर्गति से बचाकर कल्याण के मार्ग की और भेजने के लिये चिंतित रहते है । धन भी आपका तब तक है जबतक आपका पुण्य प्रबल है । पुण्य के कमजोर होते ही धन भी आपका साथ छोड़ देता है । संसार मात्र नाटक है यहां सभी दिखावटी मालिक है संसार के रंगमंच पर हर पात्र अपने अपने हिसाब से अपना अभिनय करता है । इससे वास्तविकता का कोई लेना देना नहीं होता है, व्यक्ति उस वास्तविकता को सुनकर सहन करने की क्षमता भी नहीं रखता है । मानव जीवन हमें लीज पर मिला है । संसार से एक रुपये का सिक्का ले जाने की हमारी ताकत नहीं है तो फिर झुठा अहंकार क्यों ? संसार में सभी के साथ हिलमिल कर रहे । गुरु ही हमारे मार्गदर्शक है ।
आज रविवार को प्रवचन के दौरान मुनिश्री ने बताया कि सोमवार से त्रिदिवसीय दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की आराधना एकासने के साथ रखी गई है । प्रथम दिन एकासने की आराधना का लाभ श्री कमलेशकुमार अनोखीलालजी चत्तर परिवार राजगढ़ द्वारा लिया गया है ।
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