कोरोनावायरस महामारी पर भारी पड़ी अनुयायियों की भक्ति | Corona virus mahamari pr bhari padi anuyayiyo ki bhakti

कोरोनावायरस महामारी पर भारी पड़ी अनुयायियों की भक्ति

मामा बालेश्वर जी दयाल की पुण्यतिथि हजारों अनुयायियों द्वारा उनके आश्रम पर मनाई गई

गुजरात तथा राजस्थान से हजारों की संख्या में आए अनुयायी

कोरोनावायरस महामारी पर भारी पड़ी अनुयायियों की भक्ति

रतलाम-झाबुआ (संदीप बरबेटा) - गरीबों के मसीहा कहे जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाजवादी चिंतक मामा बालेश्वर दयाल जी की आज पुण्यतिथि पर हजारों की संख्या में उनके अनुयायियों द्वारा झाबुआ जिले के  पेटलावद तहसील के बामनिया क्षेत्र में उनके आश्रम पर पुण्य स्मरण कर मनाई गई, 

प्रशासन,पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी से  अपनी ड्यूटी कर रहा था, प्रशासन द्वारा मुख्य मार्गों को बंद कर दिया गया था 

पेटलावद अनुविभागीय अधिकारी शिशिरजी गेमावत,तहसीलदार जितेंद्र जी अलावा  पूरा प्रशासनिक अमला प्रातःसे ही मामा बालेश्वर दयाल आश्रम तथा क्षेत्र  का अवलोकन कर रहे थे, सुनियोजित  तरीके से पेटलावद पुलिस थाना प्रभारी संजय जी रावत पूरी फोर्स के साथ अपनी ड्यूटी कर रहे थे,

मामा बालेश्वर जी को हजारों लोग गुरु मानते हैं।मामा बालेश्वर ने झाबुआ जिले के लिए संपूर्ण जीवन गुजार दिया। 26 दिसंबर 1998 को मामा का निधन हुआ।

राज्यसभा के पूर्व सांसद होने के बावजूद कभी बड़े अस्पतालों में इलाज नहीं कराया। बामनिया में ही इलाज कराते रहे। अंतिम समय में सरकार ने जबरन उन्हें रतलाम इलाज के लिए भेजा, लेकिन वे ज्यादा दिन यहां नहीं रुके और आखिरी सांस बामनिया में अपनी कुटिया में ही ली। उत्तर प्रदेश से बामनिया आकर मामा बालेश्वर दयाल ने आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ी। 1937 में बामनिया में डूंगर विद्यापीठ भील आश्रम की स्थापना की थी। उस समय बामनिया होलकर राज्य जिला महिदपुर के तहत आता था। यहां बेगार प्रथा प्रचलित थी। मामाजी ने राजा को प्रभावित कर आदिवासियों को मुक्ति दिलाई। मामाजी ने बिड़ला से संपर्क कर बामनिया रेलवे स्टेशन के सामने टेकरी पर राम मंदिर बनवाया था। उन्होंने आदिवासियों से लंगोटी त्यागने का संकल्प लिया। जीवनभर समाज के उपेक्षित, गरीब वर्ग आदिवासियों के बीच रहकर उन्हीं की तरह जीवनयापन किया।

 कई बड़े नेताओं द्वारा उनके आश्रम तथा क्षेत्र  को विकसित करने के लिए घोषणा की गई थी

मामा के जीते जी और निधन के बाद भी कई छोटे-बड़े नेता उनकी कर्मस्थली बामनिया आते-जाते रहे। नेताओं द्वारा बड़ी-बड़ी घोषणाएं  की गई और हर बार ये विश्वास दिलाया गया कि अब सबकुछ बदल जाएगा।क्षेत्र की जनता को विश्वास था  की बामनिया की स्थिति सुधरे न सुधरे कम से कम मामाजी की कुटिया और समाधि का उद्धार तो हो ही जाएगा, लेकिन कुछ नहीं हुआ। क्षेत्र सहित गुजरात और राजस्थान के कई क्षेत्रों के आदिवासियों में मामा को भगवान का दर्जा मिला है, लेकिन भगवान की जगह उपेक्षित है। उनकी ऐतिहासिक कुटिया, भील आश्रम उपेक्षा का शिकार है।

उपेक्षित है भील आश्रम और कुटिया-

मामाजी आदिवासी वर्ग के मसीहा रहें। उन्होंने आदिवासियों के लिए घरवालों को छोड़ दिया। जीवनभर समाज के उपेक्षितए गरीब वर्ग आदिवासियों के उत्थान के लिए न केवल संघर्ष बल्कि उनके बीच रहकर उन्ही की तरह जीवन.यापन किया और अपने जीवन के अंतिम क्षण एक कुटिया मे बिताए यह कुटिया आज भी यह बताती है कि मामा ने अपनी कथनी व करनी मे कोई अंतर नहीं किया। आज यह भील आश्रम व मामाजी की कुटिया पुरी तरह उपेक्षित है।

सामुदायिक भवन-

मामा की स्मृति में सामुदायिक भवन बनाने की घोषणा की थी। ताकि हर वर्ष मामा की पुण्यतिथि पर आने वाले अनुयायियों कों ठहरने की व्यवस्था हो पाएं। किंतु आज तक यह मांग भी पूरी नहीं हुई। 

सभागृह-

मामा बालेश्वर के अनुयायियों की   सुविधाओं हेतु मामा बालेश्वर के नाम पर विशाल सभागृह बनाने की घोषणा तत्कालीन् मुख्यमंत्री दिग्वयजयसिंह ने की थी, लेकिन यह घोषणा भी पूरी नहीं हुई। 

सर्वसुविधायुक्त अस्पताल-

पूर्व उपमुख्यमंत्री जमुनादेवी ने माम की स्मृति मे सर्वसुविधायुक्त अस्पताल बनाने की घोषणा की थी। परंतु अस्पताल अब तक नहीं बना। 

आधुनिक शिक्षा केंद्र -

भीलों को शिक्षित करने के लिए मामा ने जिस भी आश्रम की स्थापना की थी।  सर्वसुविधायुक्त आधुनिक शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित करने का आश्वसान समाजवादी नेता मुलायमसिंह यादव ने अपने बामनिया प्रवास पर दिया था।  परंतु आज भी यह स्थान उपेक्षा का शिकार है

सैनिक स्कूल-

पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फ र्नांडीस ने बामनिया में सैनिक स्कूल बनाए जाने की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि यदि प्रदेश सरकार जमीन उपलब्ध कराती है तो बाकी कार्रवाई हम पूरी करवा लेंगें। इस दिशा में अब तक एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा जा सका। 

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