श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में नवदिवसीय षाष्वत नवपद ओलीजी आराधना आज से प्रारम्भ
नवकार में षक्ति, भक्ति और मुक्ति है: मुनि रजतचन्द्रविजय
राजगढ़ (संतोष जैन) - नवकार महामंत्र के 68 अक्षरों में अपार शक्ति, भक्ति और मुक्ति समाहित है । आराधक इस महामंत्र को आधार बनाकर शाश्वत नवपद ओलीजी की आराधना नवकार के नवपदों की करता है । श्री सिद्धचक्र के केन्द्र में अरिहंत परमात्मा विराजित है । नवपद ओलीजी आराधना के प्रथम दिन सभी आराधक अरिहंत पद की आराधना कर रहे है । प्रथम अरिहंत पद के 12 गुण होते है और इसका वर्ण श्वेत होता है । यह श्वेत वर्ण आराधक को यह संदेश देता है कि व्यक्ति अपनी आत्मा को आंतरिक और बाह्य दोनों और से उजला रखे । जो आराधक श्रद्धा भक्ति भाव से युक्त होता है उसी के जीवन में सिद्धचक्र नवपद ओलीजी आराधना सफल होता है । इसमें आराधक को मन वचन काया के साथ जुड़ना पड़ता है तभी आराधना फल दायक बनती है । उक्त बात वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री रजतचन्द्रविजयजी म.सा. प्रवचन में कही और मुनिश्री ने बताया कि विपरीत परिस्थितियों में नवपद ओलीजी की आराधना श्रीपाल मयणासुन्दरी का उदाहरण हमारी आराधना का प्रेरणा स्त्रोत बनता है । जिसके जीवन में केन्द्र में अरिहंत परमात्मा विराजित है उनके जीवन में नवकार के नवपद भी विराजित हो जाते है । इस आराधना को करने के लिये पूण्य और पुरुषार्थ दोनों की जरुरत होती है । नवपद ओलीजी आराधना जीवन में कम से कम नव बार अवश्य करना चाहिये ।
श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा तीर्थ के तत्वाधान में व दादा गुरुदेव की पाट परम्परा के वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की पावनतम निश्रा में श्रीपाल राजा और मयणासुन्दरी द्वारा आधारित सर्वकष्ट निवारक आत्म शांति दायक आसोज माह की शाश्वत नवपद ओलीजी आराधना का आयोजन टाण्डा निवासी श्री राजेन्द्रकुमार सौभागमलजी लोढ़ा, श्रीमती मधुबेन, टीना जयसिंह लोढ़ा परिवार श्री शंखेश्वर पाश्र्व ग्रुप आॅफ कम्पनीज इन्दौर द्वारा रखा गया है ।