जय आदिवासी-जय जोहार एवं आदिवासी तीर एक समान जेसे गगनभेदी नारो से गुंजामय होगा आदिवासी बाहुल्य जिला
जिलेभर मे होगे विभिन्न प्रकार के आयोजन
अलीराजपुर। (रफीक क़ुरैशी) - वेसे तो प्रदेशभर मे अलीराजपुर जिला आदिवासी बाहुल्य क्षैत्र के रुप मे प्रसिद्ध है। यहां का भगोरिया पर्व भी देशभर मे सुप्रसिद्ध है। इसी के चलते यह जिला देश-विदेश मे भी जाना जाता है। जिले की प्रसिद्ध शीतलपेय ताडी भी दुनियाभर मे मशहुर है। इस जिले की खासियत यह हे कि जब भी दो लोग आपस मे मिलते हे तो एक दुसरे के अभिवादन के रुप मे राम-राम कहना नही भुलते है। अलीराजपुर-झाबुआ जिले मे 97 प्रतिशत आदिवासी समाजजन निवास करता आया है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित विश्व आदिवासी दिवस 09 अगस्त रविवार को आ रहा है। इस दिन जिले के आदिवासी समाज, बच्चे, बुढे, युवाजन ओर महिलाए इस पर्व को उत्साह ओर उमंग के साथ मनाते आए है। इस दिन पूरे विश्व के आदिवासी समाज और गैर आदिवासी समाज मिलकर बड़े ही उत्साह से इस दिन को एक त्योहार के रूप में मनाते आ रहे है। इस बार भी जिले मे विश्व आदिवासी दिवस गांव-गांव, फलियो मे उत्साहपुर्वक मनाया जा रहा है। इसको लेकर जिले के ग्रामिण अंचलो एवं शहरो मे व्यापक स्तर से तैयारियां की जा चुकी है। जिसके अंतर्गत जिले का आदिवासी समाज विभिन्न प्रकार के सांस्क्रतिक एवं धार्मिक आयोजन कर रहा है। इस बार जिला आदिवासी समाज द्वारा समाज के प्रतिभावन छात्रो, पंच-सरपंचो, गांव पटेल, कोटवारो एवं रिटायर कर्मचारियो का मान-सम्मान का भी आयोजन कर रहा है। यानि कुल मिलाकर इस पर्व पर आदिवासी समाज मे रची ओर बसी संस्क्रति ओर लोकसभ्यता का अदभुत नजारा देखने को मिलेंगा। वहि पर्व पर जय जोहार-जय आदिवासी ओर आदिवासी तीर एक समान जेसे गगनभेदी नारो से जिला गुंजामय हो उठेगा। ज्ञात रहे कि इन दिनो कोरोना महामारी एवं शासन-प्रशासन की जारी गाइडलाईन को ध्यान में रखते हुवे आदिवासी जिला कोर कमेटी ने सभी समाजजनों से शोषल डिस्टेंडिंग का पालन करते हुए अपने मोहल्ले एवं ग्रामो मे पर्व सादगी के साथ मनाने की अपील जारी की है।
*जानिए क्यो मनाया जाता है विश्व आदिवासी दिवस.?*
9 अगस्त को प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विश्वभर में आदिवासी समुदाय के लोग, आदिवासी संगठन और संयुक्त राष्ट्र व कई देशों की सरकारी संस्थानों के द्वारा परिचर्चा, नाच-गान और सामूहिक समारोह का आयोजन किया जाता है। 9 अगस्त 1995 को पहली बार विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन किया गया था। यह दिवस दुनियाभर में आदिवासियों का सबसे बड़ा दिवस है। इसलिए यह जानना जरूरी है कि 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस क्यों मनाया जाता है..? यह तारीख आदिवासियों के लिए क्या महत्व रखता है..? आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा कहां से शुरू हुई..? संयुक्त राष्ट्र ने विश्व आदिवासी दिवस की घोषणा क्यों की..? विश्व आदिवासी दिवस मनाने का क्या उद्देश्य है..? विश्व के 195 देशों में से 90 देशों में 5,000 आदिवासी समुदाय हैं, जिनकी जनसंख्या लगभग 37 करोड़ हैं। उनकी अपनी 7,000 भाषाएं हैं। लेकिन इनके अधिकारों का सबसे ज्यादा हनन होता रहा है। इसी को मद्देनजर रखते हुए विश्व आदिवासी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया, जिसका मूल उद्देश्य है आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा एवं बढ़ावा को सुनिश्चित करना। इसके अलावा खासकर विश्व के पर्यावरण संरक्षण में आदिवासियों के योगदान को चिंहित करना। आदिवासियों के अधिकारों का मसला और आदिवासी दिवस मनाने के पीछे एक लम्बा इतिहास है। आदिवासियों के साथ हो रहे प्रताड़ना एवं भेदभाव के मुद्दे को अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने, जो लीग आफ नेशन के बाद यूनाईटेड नेशन्स का एक प्रमुख अंग बना, 1920 में उठाना शुरू किया। इस संगठन ने 1957 में ‘इंडिजिनस एंड ट्राईबल पापुलेशन कान्वेंशन सं. 107 नामक दस्तावेज को अंगीकृत किया, जो आदिवासी मसले का पहला अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेज है, जिसे दुनियाभर के आदिवासियों के उपर किये जाने वाले प्रताड़ना एवं भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करने के लिए समर्पित किया गया था। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने पुनः 1989 में उक्त दस्तावेज को संशोधित करते हुए ‘इंडिजिनस एंड ट्राईबल पीपुल्स कान्वेशन 169, जिसे आईएलओ कान्वेंशन 169 भी कहा जाता है, जारी किया। यह दस्तावेज आदिवासियों के आत्म-निर्णय के अधिकार को मान्यता देते हुए जमीन, इलाका और प्राकृतिक संसाधनों पर आदिवासियों के मालिकाना हक को स्वीकृति प्रदान करता है। इसी दस्तावेज ने संयुक्त राष्ट्र के द्वारा 13 दिसंबर 2007 को जारी किये गये आदिवासी अधिकार घोषणा-पत्र में प्रमुख भूमिका निभाया। हालांकि विश्व आदिवासी दिवस मनाने के पीछे संयुक्त राज्य अमेरिका के आदिवासियों की सबसे बड़ी भूमिका है। अमेरिकी देशों में 12 अक्टूबर को कोलम्बस दिवस मनाने की प्रथा है, जिसका वहां के आदिवासियों ने घोर विरोध करते हुए उसी दिन आदिवासी दिवस मनाना शुरू किया। उन्होंने सरकारों से मांग किया कि कोलम्बस दिवस के जगह पर आदिवासी दिवस मनाया जाना चाहिए क्योंकि कोलम्बस उस उपनिवेशी शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके लिए बड़े पैमाने पर जनसंहार हुआ है। यह मामला संयुक्त राष्ट्र पहुंचा। अमेरिकी देशों के आदिवासियों के साथ हुए भेदभाव के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से 1977 में जेनेवा में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में कोलम्बस दिवस को हटाकर उसके जगह पर आदिवासी दिवस मनाने की मांग की गई। इस तरह से यह मांग जोर पकड़ता गया। आदिवासियों ने 1989 से आदिवासी दिवस मनाना शुरू कर दिया, जिसे काफी समर्थन मिला। अंततः 12 अक्टूबर 1992 को अमेरिकी देशों में कोलम्बस दिवस के जगह पर आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा शुरू हो गई। इसी बीच संयुक्त राष्ट्र ने आदिवासी अधिकारों को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय कार्यदल का गठन किया, जिसकी प्रथम बैठक 9 अगस्त 1982 को जेनेवा में हुआ। संयुक्त राष्ट्र ने 1994 को आदिवासी वर्ष घोषित किया। 23 दिसंबर 1994 को संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1995 से 2004 को प्रथम आदिवासी दशक घोषित किया तथा आदिवासियों के मुद्दे पर 9 अगस्त 1982 को हुए प्रथम बैठक के स्मरण में 9 अगस्त को प्रतिवर्ष आदिवासी दिवस मनाने की घोषणा की। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र ने 2005 से 2014 को द्वितीय आदिवासी दशक घोषित किया, जिसका मकसद आदिवासियों के मानव अधिकार, पर्यावरण, शिक्षा, स्वस्थ्य, आर्थिक एवं सामाजिक विकास के मुद्दों को सुलझाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना है। विश्व आदिवासी दिवस दुनियाभर के आदिवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और उन्हें बढ़ावा देने का दिन है। इसलिए प्रतिवर्ष 9 अगस्त को हमें अपनी एकजुटता, अपने अधिकारों के लिए संघर्ष और प्रतिबद्धता को प्रदर्शित चाहिए। इस दिन हमें घोषणा करना चाहिए कि हम आदिवासी अपनी मातृभूमि के प्रथम निवासी है। यहां की जमीन, इलाका और प्राकृतिक संसाधनों पर हमारा पहला हक है।
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