देखो यह कैसा मंजर है, चहूंओर कोरोना कहर है | Dekho yah kesa manjar hai, chahu or corona kahar hai

देखो यह कैसा मंजर है, चहूंओर कोरोना कहर है 

ऑनलाइन राष्ट्रीय काव्य निशा में मनावर के कवियों ने बांधा समां

देखो  यह कैसा मंजर है, चहूंओर कोरोना कहर है

मनावर (पवन प्रजापत) - कला, साहित्य एवं संस्कृति मंच समूह द्वारा मनावर के कवि साहित्यकार राम शर्मा 'परिंदा' और गुजरात की साहित्यकार डॉ संगीता पाल के मार्गदर्शन में प्रथम ऑनलाइन राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया । जिसमें देश के कई राज्यों के रचनाकारों ने  शिरकत की कार्यक्रम का शुभारंभ समूह संचालक रचनाकार प्रदीपकुमार अरोरा ‘पीकूू झाबुआ द्वारा मां सरस्वतीजी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन तथा आशुतोष पाल ‘आशु’ जौनपुरउप्रद्वारा सरस्वती वंदना के साथ किया गया ।

        कार्यक्रम में शामिल रचनाकारों ने समसामयिक मुद्दों और कोरोना महामारी पर रचना पाठ किया । कच्छ गुजरात से डॉ संगीता पाल ने  वर्तमान में मजदूरों की बेबसी को देखते हुए अपना दर्द यू बयां किया कि ‘कोरोना से कैसी मुसीबत है आई ,बेबस हुए हैं मजदूर भाई" उदयपुर राजस्थान की रचनाकार डॉ. रेणु सिरोया ने बासंती मौसम का बखान करते हुए अपने प्रेमगीत में कहा कि  ‘किसी की याद का दीपक जलाकर आज बैठी हूं " । जयपुर से तरुण सोनी ‘‘तनवीर’’ ने  वर्तमान सीमा विवाद पर कटाक्ष करते  हुए भारत के शांति के समर्थन पर अपनी बात रखी"मै शांति चाहता हुँ, वे युद्ध चाहते हैं" । मुम्बई से डॉ अर्चना दुबे ने मानवता का महत्व प्रतिपादित करते हुए  अपनी रचना  में बताया कि "जो जीवन करे समर्पित उसे इंसान कहते है"। भिंड से विमल भारतीय ‘‘शुक्ल’’ ने लॉक डाउन का चित्रण करते हुए  कहा कि  "एक शहर था हंसता हुआ लोग अब तो डर गए , जो रास्तों पर थे वे भी अपने घर गये " ।  खरगोन के कवि कांता प्रसाद ‘‘कमल’’ ने प्रेम का महत्व बताते हुए कहा कि "प्रेम के बिना नहीं, साथ प्रेम का सही हैं" । झाबुआ के कवि रत्नदीप खरे ने अपनी गजल में ईश्वर के न्याय की सराहना करते हुए कहा कि "इधर हल्की नहीं रखी, उधर भारी नहीं रखी , बराबर सबको दहशत की तरफदारी नहीं रखी" । डॉ. अनिल श्रीवास्तव ‘पारा’ ने   "उंगलियां लट पर ना तुम यूं फेरो कभी , काली घटाएं छा जाएगी " । गीत के माध्यम से  माहौल को श्रंगारमय बना दिया  भारती सोनी झाबुआ ने शब्दों की अथक यात्रा से समंदर की गहराई को नापते हुए कहा कि  "समुद्र की गहराइयों से रत्न निकाले , आओ मुश्किल में नये प्रयत्न निकाले " । कवि प्रदीप कुमार अरोरा ने गरीबी की  व्यथा गाते हुए हुए कहा कि " टूटी हुई चप्पल जगह-जगह तार से बंधी हुई है , जिंदगी यह कैसा व्यापार बनी हुई है "। संचालक प्रवीणकुमार सोनी ‘‘पुष्प’’ झाबुुआ ने पत्रकारों  कि कर्म के प्रति सजगता और हौसले की दाद देते हुए कहा कि  "खबरदार हूं मैं , पत्रकार हूं मैं‌, हर परिस्थिति में असरदार हूं मैं"।

मनावर के कवियों ने बांधा समां

मनावर के साहित्यकार कवि राम शर्मा परिंदा ने बचपन की यादों को ताजा करते हुए आधुनिक बचपन से तुलना करते हुए कहा कि "ना टीवी था ना मोबाइल था और ना पब्जी का फंडा था , एक हाथ में गिल्ली और दूजे में डंडा था" ।  व्यंग्य कवि विश्वदीप मिश्र ने वर्तमान कोरोना जेसी विपदा के समय भी सियासत करने   व अमानवीय व्यवहार पर करारा व्यंग कसते हुए अपनी व्यंग कविता के माध्यम से कहा कि "देखो यह कैसा मंजर है , चहूंओर कोरोना कहर है" ।  भटक रहे मजदूर दरबदर मुश्किल में मंजिल का सफर है

कार्यक्रम के अंत में आभार समूह संचालक मंडल की ओर से प्रदीप कुमार अरोरा ने व्यक्त किया ।           फोटो 00 राष्ट्रीय ऑनलाइन काव्य निशा में शामिल होने वाले कवि एवं कवियत्री

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