कांग्रेस सत्ता का उपयोग आदिवासियों की आवाज दबाने मे ना करें - जयस
मेघनगर (जिया उल हक क़ादरी) - प्रदेश में बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर आदिवासी समाज ने कोंग्रेस में विश्वास कर सत्ता का सिंहासन बड़े अरमानो के साथ कोंग्रेस को सोपा क्योंकि आदिवासी समाज को लगता था कि उनके सवैधानिक हक अधिकार बीजेपी के रहते सुरक्षित नही है इसी बड़े डर के चलते सत्ता कोंग्रेस को देदी पर मध्यप्रदेश में सत्ता का सुख भोग रही कमलनाथ सरकार ने अपने आने के एक वर्ष के भीतर ही 100 वर्ष पुरानी व्यवस्थाओं को मटियामेट में करते हुए मध्यप्रदेश भु राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 व 172 को शून्य कर दिया शुरुआती विरोध के बाद 165 पर सरकार ने यूटर्न लेलिया पर 172 पे मुँह अभी तक बंद है ।
वही जयस ने आदिवासी समाज की तरफ से सरकार से ये पूछा कि जब वर्तमान संविधान का अनुच्छेद 19 (5)(6) जब अधिसूचित छेत्र में गेर आदिवासियों के समस्त मौलिक अधिकार निरस्त करता है उससे पहले भारत सरकार अधिनियम 1935 व भारत सरकार अधिनियम 1919 भी यही बात कहता है तो फिर गेर आदिवासी की भूमि आदिवासी छेत्रों में नही हो सकती जो तर्क संगत प्रशन है अतः जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन ने चेतावनी दी है कि सरकार आदिवासियों के विरोध में कोई भी ऐसा फैसला ना लें जिससे आदिवासियों का कोई नुकसान हो जल जंगल जमीन और धूल मूल के मालिक आदिवासी ही है गैर आदिवासी की जमीन का उपयोग परिवर्तन करने की सीमा खत्म करने का जो फैसला कमलनाथ सरकार ने लिया उस फैसले का विरोध जयस संगठन के साथ-साथ आदिवासियों के कई संगठन कर चुके हैं और अधिसूचित क्षेत्रों में एनआरसी के प्रावधान लागू करने की मांग भी करते हैं सीएम कमलनाथ के झाबुआ दौरे का विरोध करने वाले जयस के प्रवक्ता व आदिवासी समाज के लिए एक दिन थाने में बिता चुके अनिल कटारा जी सर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो कहा था बिल्कुल सही कहा था यहां आदिवासियों के मूल अधिकार अतिक्रमण हो रहे हैं यहां सिर्फ वही गैर आदिवासी रह सकते हैं जो 1919 के पहले यहां थे ऐसे में गैर आदिवासियों की जमीन बाद में आने वाले कैसे खरीद सकते हैं यहां खदानें बाहर से आने वालों को ही दी गई है इन पर आदिवासियों का अधिकार था आदिवासियों को कुछ नहीं मिल पा रहा है पूर्व में सत्ता में काबिज रही शिवराज सरकार ने भी आदिवासियों के हितों में कोई विशेष काम नहीं किए अगर कोई सरकार आदिवासियों के हक अधिकारों को देने वह बचाने का दावा करती है तो वह अपने आंकड़े आदिवासी समाज के सामने प्रदर्शित करें हाल ही में कमलनाथ सरकार ने मध्यप्रदेश में बाहरी कंपनियों को मध्यप्रदेश में स्थापित कर करने की बात कहीं इसका भी जयस पूर्ण जोर से विरोध करता है क्योंकि आदिवासी पहले से ही इन केमिकल युक्त कंपनियों की मार झेल रहे हैं और ना ही यहां आदिवासियों को कोई रोजगार मिल रहा है उन्हें तो बाहर पलायन पर ही जाना पड़ रहा है तो यहां पर कंपनियां स्थापित करने का क्या फायदा सविधान में दिए अपने हक अधिकारों के आधार पर आदिवासी समाज 1 इंच भी औद्योगिक कंपनियों के लिए जमीन नहीं देगा।
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