विधानसभा उपचुनाव के लिए कांग्रेस व भाजपा ने बिछाई अपनी राजनीति बिसात
झाबुआ (अली असगर बोहरा) - मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले में इन दिनों राजनैतिक वातावरण गरम है। कारण झाबुआ विधानसभा के अक्टूबर या नवबंर माह में उपचुनाव होने वाले है । झाबुआ विधानसभा की सीट भाजपा के कब्जे में है और कांग्रेस इस सीट पर किसी भी तरह अपना खाता खोलना चाहती है जिसके लिये प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने अपनी पूरी ताकत उपचुनाव के पहले ही झोंकने की रणनीति पर काम कर रही है। लगभग हर सप्ताह प्रदेश सरकार का कोई न कोई मंत्री झाबुआ पहुंच रहा है एवं इस दौरान कुछ न कुछ घोषणाएं कर रहा है। पिछले महीने प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ झाबुआ पहुंचे थे और सामूहिक कन्यादान योजना में शिरकत की और 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस पर आने की बात कहीं थी लेकिन बारिश के चलते उनका दौरा कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया। लेकिन उनके स्थान पर जिले के प्रभारी मंत्री सुरेन्द्र सिंह हनी बघेल, आदिम जाति कल्याण मंत्री मरकाम झाबुआ पहुंचे थे । 31 अगस्त को पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री कमलेश्वर पटेल झाबुआ के भ्रमण पर आये । 1 सितंबर को प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट झाबुआ ने स्वास्थ्य कार्यक्रम में शिरकत की। साथ ही स्वास्थ्य मंत्री ने जिला चिकित्सालय को 200 बेड से 300 बेड में विस्तार करने की घोषणा की। इसी कडी में 3 सितंबर को प्रदेश के कृषि मंत्री सचिन यादव एवं ऊर्जा मंत्री प्रियव्रतसिंह भी झाबुआ पहुंचे और उन्होंने प्रदेश सरकार की जन कल्याणकारी योजनाएं गिनाई तथा नागरिकों से उनके समस्याएं जानी और हल करने का आश्वासन भी दिया। इसी के साथ नगर प्रशासन मंत्री जयवर्धनसिंह के दौरा कार्यक्रम भी आ गये है राजनैतिक सूत्रों की माने तो 8 सितबंर को प्रदेश के जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा और 11 सितंबर तक मुख्यमंत्री कमलनाथ झाबुआ पहुंचने की उम्मीद है। अपने दौरों में सभी मंत्री क्षेत्र के पूर्व सांसद और उपचुनाव के संभावित उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया को अपने साथ रख रहे है ताबड तोड कांग्रेसी नेताओं के दौरों ने जिले के अधिकारियों की नींद हराम कर दी है राजनैतिक बयानबाजी भी जमकर हो रही है।
भाजपा ने भी विधानसभा उपचुनाव से समीकरण के लिए बनाई रणनीति
4 सितंबर को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर, केंद्रीय मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राकेशसिंह, भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय, संभागीय संगठन मंत्री जयपालसिंह चावड़ा एवं सांसद गुमानसिंह डामोर कार्यकर्ता सम्मेलन में पहुंचे। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने प्रदेश की कमलनाथ सरकार को जमकर आड़े हाथों लिया। तो वहीं केंद्रीय मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर के अचानक झाबुआ पहुंचने पर कार्यकर्ताओं का उत्साह चरम पर था। गौरतलब है कि झाबुआ जिले की तीन विधानसभा सीटों में दो कांग्रेस के पास है तो एक पर भाजपा का कब्जा है तथा लोकसभा चुनाव में जीएस डामोर की जीत के बाद यह सीट से उन्होंने इस्तीफा दिया है और भाजपा ने इस सीट को अपने पास सुरक्षित रखने की कवायद शुरू कर दी है। बताते चले कि भाजपा से झाबुआ सीट के लिए पूर्व विधायक शांतिलाल बिलवाल, भाजयुमो जिलाध्यक्ष भानू भूरिया अपने सशक्त दावेदारी जता रहे हैं तो वहीं सांसद गुमानसिंह डामोर भी अपने चहेते एक युवा को इस सीट से लड़ाने का मन बना रहे हैं, इसी के साथ भाजपा से आधा दर्जन नाम राजनीति गलियारों में तैर रहे हैं। अब देखना यह है कि क्या गुमानसिंह डामोर अपने किसी चहेते को इस विधानसभा उपचुनाव का टिकट दिला पाते हैं? अगर गुमानसिंह डामोर की चली तो करीब आधा दर्जन भाजपा के दावेदारों की हवा निकल सकती है।
कांग्रेस में कांतिलाल भूरिया सशक्त दावेदार
मप्र में कांग्रेस की सरकार है और कमलनाथ सरकार होते हुए कांतिलाल भूरिया की मजबूत पकड़ होने के चलते वे इस उपचुनाव के लिए सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। अगर वे इस सीट के लिए चुनाव लड़कर जीत जाते हैं तो मंत्री या प्रदेश में कोई बड़ा पद मिलना तय है, लेकिन इस बार हार का मतलब भूरिया का राजनीतिक कॅरियर खत्म माना जाएगा। क्योंकि कांग्रेस में भी युवाओं की भरमार है और इस सीट के लिए जेवियर मेड़ा, डॉ. विक्रांत भूूरिया, हेमचंद्र डामोर के नामों की भी चर्चाएं चल रही है। राजनीति का ऊंट किस करवट बैठ जाए यह कहा नहीं जा सकता। टिकट किसे मिलेगा यह तो भविष्य के गर्त में छिपा है, लेकिन कांग्रेस के मंत्रियों का लगातार झाबुआ में आना यह बता रहा है कि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष का नाम फाइनल होने के पश्चात ही विधानसभा उपचुनाव की तारीख का एलान हो सकता है और इसलिए कांग्रेस के मंत्री अभी से उपचुनाव की तैयारियों में मशगुल हो चुके हैं और मुख्यमंत्री कमलनाथ भी इस उपचुनाव की गंभीरता को अच्छी तरह से समझते हैं क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान आज जिले में आए, तो कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा फूंक गए हैं। अगर भाजपा व कांग्रेस में गुटबाजी हावी नहीं रही तो यह उपचुनावी मुकाबला दिलचस्प होगा। कांग्रेस की गुटबाजी की बात करे तो पिछला विधानसभा चुनाव सबको बता है कांग्रेसियों ने भितराघात कर कांग्रेस को आसान जीत दिख रही इस सीट पर मुंह की खानी पड़ी थी और अगर इस बार भी ऐसा होता है तो कांग्रेस के लिए सबसे खतरनाक होगा।
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