मुश्किल डगर पर चलकर संवार रहे बच्चों का भविष्य
डिंडौरी (पप्पू पड़वार) - बच्चों के भविष्य को संवारने का जुनून ऐसा कि मार्ग न होने पर भी पगडंडी, नाले व दलदल भरे रास्ते को पार कर शिक्षक पहुंचता है स्कूल। समय पर स्कूल पहुंचे इसके लिए वह सुबह 5 बजे उठता है और घर के कामकाज कर सुबह 9 बजे ही कठिन डगर से गुजरता हुआ स्कूल पहुंचता है। यह कोई एक दिन की बात नहीं ऐसा रोज जूझना पड़ता है। हालांकि घर से स्कूल महज 3 किमी की दूरी पर है, लेकिन कठिन मार्ग होने के कारण शिक्षक को स्कूल तक पहुंचने में डेढ़ घंटे लग जाते हैं। हम बात कर रहे हैं जिला डिण्डौरी के जनपद मुख्यालय समनापुर के बैगा बाहुल्य ग्राम ददराटोला के शासकीय प्राइमरी स्कूल में पदस्थ शिक्षक भुवन चंद चौधरी की।
ददराटोला के शासकीय प्राइमरी स्कूल का पुराना जर्जर भवन जगह-जगह से टपक रहा है। केवल एक कक्ष ही बैठने लायक है। इसी कक्ष में एक से पांच तक की कक्षाएं लगती है। स्कूल में 32 विलुप्त हो रही प्रजाति के बैगा विद्यार्थियों की संख्या दर्ज है। तमाम योजनाएं बैगाओं के विकास के लिए ही संचालित हो रही है। उसके बाद भी बैगा गांव के स्कूल उपेक्षा का शिकार हो गया है। गांव के साथ स्कूल में भी सड़क, बिजली, पानी का रोना है। ब तक गांव के स्कूल का हाल जानने न तो विकासखंड स्तर के अधिकारी आए हैं और न ही जिला स्तर के। शिकायत के बाद भी समस्याओं पर कोई पहल नहीं की जाती। टपकते एक कमरे में भोजन समूह द्वारा बनाकर बच्चों को परोसा जाता है।
शराबियों से परेशान शिक्षक
शिक्षक भुवन चंद चौधरी का कहना है कि बच्चों के लिए जरूरी सामग्री शिक्षक स्वयं अपने खर्चे से देते हैं। कुछ बैगा ऐसे भी है, जो शराब के नशे में स्कूल पहुंचते हैं। कुर्सी से उठाकर बच्चों को स्वयं पढ़ाने लगते हैं। नशा उतरने पर माफी तो मांगते हैं, लेकिन यह आए दिन की समस्या बन गई है। 15 हजार वेतन पाने वाले शिक्षक भुवन चंद बैगा बच्चों के बीमार होने पर स्वयं दवा कराने से भी पीछे नहीं हटते। समझदार बैगा परिवार भी इसी के चलते इनकी बात गंभीरता से मानता है।
अनुकंपा नियुक्ति से मिली नौकरी
ददराटोला में पदस्थ शिक्षक भुवन चंद चौधरी के पिता मानिक लाल चौधरी भी शिक्षक थे। 17 मई 1999 को पिता का निधन हो गया। अनुकंपा नियुक्ति के चार वर्ष कार्यालयों के चक्कर लगाने के बाद 2003 में भुवन चंद को प्राइमरी स्कूल दामीतितराही में अनुकंपा नियुक्ति मिली। 29 जून 2012 को शिक्षक भुवन चंद का तबादला बैगा बस्ती में संचालित प्राइमरी स्कूल में कर दिया गया।
जर्जर हो गया स्कूल
कठिन डगर पार कर शिक्षक 10.25 में स्कूल पहुंचते हैं। प्रार्थना होने के बाद कक्षाएं संचालित हो जाती है। भुवनचंद बच्चों को पढ़ाने में जुट जाते हैं। दोपहर एक बजे मध्यान्ह भोजन वे बच्चों के साथ ही बैठकर करते हैं। जब उन्हें समय मिलता है तो विभागीय जानकारियां भी बनाने में जुट जाते हैं। 4.30 बजे छुट्टी होने के बाद बच्चों को घर रवाना कर शिक्षक भुवनचंद फिर निकल पड़ते हैं अपने आशियाने की ओर कठिन डगर को पार करते हुए। शिक्षक गांव तक मार्ग न होने से तीन किमी का सफर पैदल तो चुनौतियों के साथ पार कर स्कूल पहुंचते हैं, लेकिन यहां भी समस्याएं कम नहीं होती। 20 साल पुराना भवन जर्जर हो चला है।
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