बालाघाट के सुगन्धित धान चिन्नोर का भौगोलिक सूचक (जियोग्राफीकल इन्डीकेसन)
बालाघाट (टोपराम पटले) - परम्परा में सुगन्धित धान प्राचीन काल से ही उसकी गुणवत्ता एवं मांगलिक कार्यो में उपयोग के लिए श्रेष्ठ माना जा रहा हैं । वर्तमान में विपुल उत्पादन वाली नई किस्मों के प्रचलन के कारण सुगंधित धान की परम्परागत दुर्लभ किस्में विलुप्त होती जा रही है परन्तु बालाघाट जिले में आज भी कुछ कृषको द्वारा सुगंधित धान आज भी कुछ कृषकों द्वारा सुगंधित धान की खेती की जा रही हैं एवं इन किस्मों की विलुप्त होने से बचाकर रखा गया है । यहाँ के कृषकों का जीवन यापन एवं संस्कृति इन्ही पारम्परिक किस्मों से जुड़ी हुई है। जिससे यहाँ पर जैविक सम्पदा का संरक्षण हो पाया है।
क्या हैं भौगोलिक सूचक - यह किसी उत्पाद का एक चिन्हित नाम या साइन होता है जो किसी विशेष भौगोलिक स्थान या मूल से संबंध रखता है, उस क्षेत्र में जहाँ की गुणवत्ता, प्रतिष्ठता या अच्छाई की अन्य विशेषता अनिवार्य रूप से अपनी भौगोलिक मूल के कारण हैं। भौगोलिक सूचक या संकेत भारतीय संदर्भ में बौद्धिक संपदा अधिकार(आइ.पी.आर.) के अन्तर्गत एक महत्वपूर्ण पहचान के रूप में उभरा है। यह बाजार में उत्पादों के प्रतिस्पर्धा से उनके उत्पादों में अन्तर एव गुणवत्ता युक्त उत्पाद की पहचान उस विशेष भौगोलिक क्षेत्र की वजह से मिलता है और उन उत्पादों के प्रीमियम मूल्य दिलाने में मदद करता है। इस प्रकार भौगोलिक सूचक उस उत्पाद को पर्याप्त कानूनी संरक्षण प्रदान कर उनकी हेरा-फेरी रोकने के लिए अतिआवश्यक हो जाता हैं।
बालाघाट जिले के 51 किसानो के समूह द्वारा संचालित चिन्नौर सीड्स प्रोडुसर कम्पनी लिमिटेड वार्ड नं. 21 सर्किट हाउस रोड बालाघाट म.प्र. इंण्डिया 481001 द्वारा उच्च गुणवत्ता युक्त चिन्नौर का उत्पादन प्रसंस्करण एवं विपणन का कार्य किसानों द्वारा किया जाता है, इच्छुक चिन्नौर उत्पादक कृषक इस किसानों की कम्पनी से कभी भी जुड़ सकते है। इस प्रजाति के संरक्षण एवं विपणन कों बढ़ावा देने के लिए जवाहरलाल नेहरू कृषि वि. वि. के अन्तर्गत आने वाले कृषि महाविद्यालय बालाघाट में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा फार्मर फस्ट परियोजना चलाई जा रही है जिसमें इस प्रजाति के क्षेत्रफल एवं उत्पादनको बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहें ।
इस परियोजना से जुडे़ हुए किसानों को चिन्नौर के उत्पादन, प्रसंसकरण एव विपणन से अन्य धान की किस्मों की तुलना में अधिक आर्थिक लाभ प्राप्त हो रहा है। धान की इस प्रजाति का नाम राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है जिससे इस प्रजाति को भौगोलिक सूचक(जियोग्राफिकल इंडिकेशन) हेतु पंजीकरण कराना अतिआवश्यक है। इसके पंजिकरण से इस प्रजाति को अर्न्तराष्ट्रीय स्तर पर ख्याती एवं विपणन हेतु बाजार मिल जायेगा। इस प्रजाति का पंजिकरण भारत सरकार द्वारा प्रजाति के रूप में किया जा चुका है जिसकी अधिसूचना इस प्रजाति के विपणन में लाइलेंस हेतु किया जा सकेगा।
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