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| बारूद के ढेर पर रीवा संभाग—खाकी के 'मैनेजमेंट' और चंद रुपयों की 'दलाली' ने जनता को धकेला मौत के मुहाने पर Aajtak24 News |
रीवा/मऊगंज - रीवा संभाग आज एक ऐसे ज्वालामुखी पर बैठा है जो कभी भी फट सकता है। गुढ़ थाना क्षेत्र में अवैध पटाखा फैक्ट्री में हुआ धमाका तो महज एक 'ट्रेलर' है; असल फिल्म तो उन रास्तों और पहाड़ियों में छिपी है जहाँ क्विंटल के हिसाब से बारूद का अवैध परिवहन सीना तानकर किया जा रहा है। सवाल यह है कि क्या यह सब पुलिस की नाक के नीचे बिना 'संरक्षण' के संभव है?
'मैनेजमेंट' का खेल: वर्दी जब सौदेबाजी पर उतर आए
स्थानीय गलियारों में यह चर्चा आम है कि "पुलिस चाहे तो परिंदा भी पर नहीं मार सकता", तो फिर सालों से अवैध फैक्ट्रियां, मशीनें और मजदूर बारूद के साथ कैसे खेल रहे थे? सूत्रों का दावा है कि गुढ़ थाने में पूर्व में पदस्थ रहे कई थाना प्रभारियों ने इस अवैध धंधे का 'स्वाद' चखा है। जुआ फड़ की तरह बारूद की इन फैक्ट्रियों को भी 'मैनेज' किया गया। चंद रुपयों के लालच में वर्दी की गरिमा को ताक पर रखकर बस्तियों के बीच मौत का सामान सजाने की अनुमति दी गई।
पत्थर खदानें या बारूद के गोदाम?
रीवा संभाग में पत्थर उत्खनन (Stone Mining) के नाम पर बारूद का खेल सबसे गंदा है। मऊगंज के पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर रीवा के गुढ़, सिरमौर और चोरहटा जैसे इलाकों में पत्थर तोड़ने के लिए भारी मात्रा में ब्लास्टिंग की जाती है। इस ब्लास्टिंग के लिए आने वाला बारूद मुख्य सड़कों और भीड़भाड़ वाले बाजारों से होकर गुजरता है। नियमानुसार इसके परिवहन के लिए कड़े सुरक्षा मानक होने चाहिए, लेकिन यहाँ भ्रष्टाचार की 'हिस्सेदारी' ने नियमों को फाइलों में दफन कर दिया है।
भ्रष्टाचार की 'चेन': नीचे से ऊपर तक हिस्सा
यह कड़वा सच है कि इस अवैध कारोबार की जड़ें बहुत गहरी हैं। अगर हर स्तर पर भ्रष्टाचार में 'बराबरी की हिस्सेदारी' न होती, तो शायद ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होती। जब रक्षक ही भक्षक बन जाए और अवैध फैक्ट्रियों को संरक्षण देने की 'परंपरा' शुरू कर दे, तो आम जनता की सुरक्षा भगवान भरोसे ही रह जाती है। हर हादसे के बाद जांच का ढोंग और मुआवजे का मरहम लगाकर जिम्मेदार अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
गंभीर सवाल: क्या सच कभी सामने आएगा?
गुढ़ की घटना ने प्रशासन के सामने कुछ ऐसे सवाल खड़े किए हैं जिनका जवाब मिलना फिलहाल मुश्किल दिखता है:
क्या वर्तमान पुलिस प्रशासन उन पूर्व थाना प्रभारियों की भूमिका की जांच करेगा जिनके कार्यकाल में यह 'मौत का कारोबार' फला-फूला?
क्या उन सफेदपोशों और रसूखदारों पर कार्रवाई होगी जो इन अवैध पत्थर खदानों और फैक्ट्रियों के असली मालिक हैं?
क्या बारूद के अवैध परिवहन को रोकने के लिए सड़कों पर कोई ठोस चेकिंग अभियान चलाया जाएगा?
निष्कर्ष: धुएं में उड़ती उम्मीदें
रीवा संभाग की जनता आज डरी हुई है। हर धमाके के साथ सिर्फ इमारतें नहीं गिरतीं, बल्कि पुलिस और प्रशासन पर बचा-कुचा भरोसा भी मलबे में तब्दील हो जाता है। अगर समय रहते इन 'बारूद के सौदागरों' और उनके 'वर्दीधारी संरक्षकों' पर नकेल नहीं कसी गई, तो अगला धमाका किसी और हँसते-खेलते परिवार की खुशियाँ निगल जाएगा। अब देखना यह है कि क्या प्रदेश की 'मोहन सरकार' इस बारूद के धुएं को साफ कर दोषियों को जेल भेजेगी, या हमेशा की तरह सब कुछ फाइलों में दबकर रह जाएगा।
