उपमुख्यमंत्री के कार्यक्रम में जनता की दुर्दशा: गंगेव में अव्यवस्था का बोलबाला, पानी के लिए तरसते रहे लोग log Aajtak24 News

उपमुख्यमंत्री के कार्यक्रम में जनता की दुर्दशा: गंगेव में अव्यवस्था का बोलबाला, पानी के लिए तरसते रहे लोग log Aajtak24 News

रीवा/गंगेव - उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल के जन्मदिन के अवसर पर गंगेव में आयोजित कार्यक्रम विकास की तस्वीर पेश करने के बजाय, प्रशासनिक अव्यवस्था और अहंकार का एक दुखद उदाहरण बनकर रह गया। हजारों की संख्या में पहुँची जनता को भीषण गर्मी और धूप में घंटों तक पानी के लिए तड़पना पड़ा, लेकिन प्रशासन और कार्यक्रम समिति दोनों ने ही इस ओर से आँखें फेर लीं। इस घटना ने जहाँ एक ओर सरकारी कार्यक्रमों की बदइंतजामी को उजागर किया, वहीं दूसरी ओर अधिकारियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के गैर-जिम्मेदाराना रवैये पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

सरपंच का अपमान और जनता का आक्रोश

कार्यक्रम में पानी की व्यवस्था की जिम्मेदारी स्थानीय सरपंचों को दी गई थी। जब प्यास से बेहाल जनता ने उनसे पानी माँगा, तो उन्हें मदद तो नहीं मिली, बल्कि अपमानजनक जवाब सुनने को मिला। ग्रामीणों ने बताया कि एक सरपंच ने तंज कसते हुए कहा, "जिसके बुलावे पर आए हो, उसी से पानी माँगो... जनपद में वही होगा, जो मैं चाहूँगा।" इस बयान ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया। लोगों ने इसे जनप्रतिनिधियों का खुला अपमान और उनके अहंकार की पराकाष्ठा बताया, जो जनता को सेवक नहीं, बल्कि अपने आदेशों का पालन करने वाला समझते हैं। यह घटना बताती है कि जनता के प्रति उनका सम्मान कितना कम है, भले ही वे बड़े नेताओं के कार्यक्रम में क्यों न मौजूद हों।

सीईओ की कागजी कार्रवाई और 'फर्जी खबर' का दावा

जनपद की सीईओ प्राची चौबे ने इस पूरे मामले पर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की। उन्होंने दावा किया कि कार्यक्रम में पानी की पूरी व्यवस्था थी। उन्होंने एक टैंकर, पानी के पाउच और बोतलबंद पानी मंगाने की बात कही, लेकिन मौके पर मौजूद लोगों का कहना है कि यह व्यवस्था केवल दिखावे मात्र थी। बोतलबंद पानी सिर्फ वीआईपी मेहमानों के लिए उपलब्ध था, जबकि आम जनता प्यास से तड़पती रही। इससे भी ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि जब इस अव्यवस्था की खबर सामने आई, तो सीईओ ने इसे "फर्जी और भ्रामक" बताकर खारिज कर दिया और भविष्य में ऐसी खबरें न चलाने की नसीहत दे डाली। यह रवैया बेहद चिंताजनक है। एक तरफ़ लाखों-करोड़ों रुपये सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर खर्च किए जाते हैं, और दूसरी तरफ़ जब उसी व्यवस्था की कमियों को उजागर किया जाता है, तो उसे झूठा करार दिया जाता है। यह अधिकारियों की जवाबदेही से बचने और अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने की कोशिश को दर्शाता है। जनता की समस्या को समझना और उसका समाधान करना अधिकारियों का कर्तव्य है, न कि सच्चाई पर परदा डालना।

प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल

गंगेव की यह घटना सिर्फ एक कार्यक्रम की अव्यवस्था नहीं है, बल्कि यह जनपद पंचायत में व्याप्त प्रशासनिक कुप्रबंधन की एक झलक है। जब उपमुख्यमंत्री जैसे बड़े नेता की मौजूदगी में जनता को पानी जैसी बुनियादी सुविधा नहीं मिल पाई, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि सामान्य दिनों में आम ग्रामीणों की हालत कैसी होगी? जनता का कहना है कि अब उनकी सहनशीलता की सीमा टूट चुकी है। वे चाहते हैं कि इस मामले की उच्चस्तरीय जाँच हो और दोषी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। यह घटना सरकार के लिए एक चेतावनी है कि अगर जमीनी स्तर पर व्यवस्था को ठीक नहीं किया गया, तो अच्छे से अच्छे अभियान भी सिर्फ कागजी बनकर रह जाएँगे और जनता का विश्वास प्रशासनिक तंत्र से पूरी तरह उठ जाएगा।



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