रीवा-मऊगंज में खाद का संकट गहराया: किसान बेहाल, कालाबाजारी पर रोक लगाने में विफल प्रशासन Aajtak24 News


रीवा-मऊगंज में खाद का संकट गहराया: किसान बेहाल, कालाबाजारी पर रोक लगाने में विफल प्रशासन Aajtak24 News 

रीवा/मऊगंज - खरीफ सीजन के चरम पर होने के बावजूद, रीवा और मऊगंज जिलों में किसान खाद की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। सहकारी समितियों और खुले बाज़ारों, दोनों ही जगह किसानों को सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर खाद नहीं मिल पा रही है, जिससे वे मजबूरन महंगे दामों पर इसे खरीदने को विवश हैं। यह स्थिति कालाबाजारी और प्रशासनिक विफलता को उजागर करती है।

कीमतों में भारी अंतर: कालाबाजारी चरम पर

सरकार ने सब्सिडी के बाद डीएपी का मूल्य ₹1350 प्रति बोरी और यूरिया का मूल्य ₹270 प्रति बोरी तय किया है, लेकिन बाज़ार में ये खाद क्रमशः ₹1500–1600 और ₹500–600 प्रति बोरी में बेची जा रही हैं। अन्य खादों में भी ₹100–200 प्रति बोरी की अतिरिक्त वसूली हो रही है। इस तरह, किसान खाद के लिए तय कीमत से कहीं ज़्यादा भुगतान करने को मजबूर हैं।

नैनो लिक्विड थोपने का आरोप

ज़िले में कुल 148 सहकारी समितियाँ हैं, लेकिन अधिकांश में खाद उपलब्ध नहीं है। इसके बजाय, किसानों को नैनो डीएपी और नैनो यूरिया लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हालाँकि, किसानों के पास इन लिक्विड खादों के छिड़काव के लिए मशीनें नहीं हैं, और उन्हें मशीनें किराए पर लेने पर हज़ारों रुपये का अतिरिक्त ख़र्च उठाना पड़ रहा है, जिससे यह समाधान किसानों के लिए एक अतिरिक्त बोझ बन गया है।

कर्ज नीति में बदलाव से बढ़ी मुसीबत

पहले सहकारी समितियों से किसानों को 60% नकद और 40% खाद/बीज के रूप में कर्ज मिलता था। इस नीति को अब बदलकर 80% नकद और 20% खाद/बीज कर दिया गया है। सरकार का दावा है कि इससे कालाबाजारी रुकेगी, लेकिन इसके ठीक विपरीत, इस बदलाव से वास्तविक किसानों को खाद मिलना और भी मुश्किल हो गया है।

उत्तर प्रदेश से खाद लाने को मजबूर किसान

हालात इतने खराब हैं कि रीवा-मऊगंज के किसानों को अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मोटरसाइकिलों और छोटे वाहनों से उत्तर प्रदेश से खाद लाना पड़ रहा है, जहाँ अब वहाँ भी संकट गहराता जा रहा है। यह स्थिति मध्यप्रदेश सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े करती है, जो अपने ही किसानों को परदेसी बाज़ारों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर कर रही है। कालाबाजारी में कुछ व्यापारी और किसान, दोनों की मिलीभगत से हालात और खराब हो गए हैं, जिससे किसानों के बीच आपसी विश्वास भी कम हो रहा है। पहले से ही दलहन फसलों की कम कीमत की दोहरी मार झेल रहे किसान अब खाद संकट से बेहाल हैं। यह समय सरकार और प्रशासन के लिए जागने और जल्द से जल्द इस संकट को हल करने का है।

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