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रीवा में लाठीचार्ज: नशा कारोबार पर उठे सवाल, सरकार पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप aarop Aajtak24 News |
रीवा/मध्यप्रदेश - रीवा में हाल ही में हुए एक लाठीचार्ज ने नशा कारोबार के खिलाफ चल रहे अभियानों और सरकार की नीतियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एनएसयूआई (NSUI) के कार्यकर्ताओं ने हाथों में कोरेक्स की खाली शीशियां लेकर पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया, लेकिन उनका जवाब पुलिस की लाठियों से मिला। इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि लोकतंत्र में आवाज उठाना कितना जोखिम भरा हो सकता है।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर लाठीचार्ज
प्रदर्शनकारी छात्र यह दिखाना चाहते थे कि सरकार के दावों के बावजूद शहर में कोरेक्स और अन्य नशीली दवाओं की आपूर्ति धड़ल्ले से जारी है। वे सिर्फ इतना पूछ रहे थे कि इतनी भारी मात्रा में ये प्रतिबंधित दवाएं आती कहां से हैं? लेकिन उनके सवालों का जवाब पुलिस की लाठी से मिला। इस घटना ने लोकतंत्र में सवाल पूछने और सच बोलने के अधिकार पर एक चोट पहुंचाई है।
जनता और पुलिस: मोहरे, असली खिलाड़ी सत्ता
लेख में यह तर्क दिया गया है कि इस पूरे खेल में जनता और पुलिस दोनों ही मोहरे हैं, जबकि असली खिलाड़ी सत्ता में बैठे लोग हैं। पुलिस को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर बल प्रयोग करने के लिए मजबूर किया जाता है, जबकि जनता अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग कर रही होती है। असली गुनहगार वे ताकतवर लोग हैं जो कंपनियों को प्रतिबंधित नशीली दवाओं का उत्पादन जारी रखने का लाइसेंस देते हैं।
सरकार का दोहरा चेहरा
लेख में सरकार पर दोहरा रवैया अपनाने का आरोप लगाया गया है। कागज पर सरकार नशे के खिलाफ बड़े-बड़े अभियान चलाती है, लेकिन जमीनी स्तर पर वही सरकार कंपनियों को उत्पादन जारी रखने की अनुमति देती है। इस विरोधाभास ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि जब कोरेक्स प्रतिबंधित है तो इसका उत्पादन क्यों जारी है और किन लोगों के संरक्षण में कंपनियों को यह लाइसेंस मिल रहा है?
लोकतंत्र पर लाठियों की चोट
संविधान हर नागरिक को शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन का अधिकार देता है, लेकिन रीवा की घटना ने इस अधिकार की मर्यादा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सवाल उठाया गया है कि क्या यही लोकतंत्र है, जहां भ्रष्टाचार को संरक्षण मिलता है और जनता को दमन का सामना करना पड़ता है? यह घटना केवल युवाओं पर हुए लाठीचार्ज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस पूरे तंत्र की तस्वीर दिखाती है जहां जनता और पुलिस को आमने-सामने खड़ा कर दिया जाता है, जबकि असली सौदे सत्ता और माफियाओं के बीच तय होते हैं।
समाधान: उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध
लेख के अनुसार, अगर सरकार सचमुच नशे के खिलाफ है तो पहला कदम कोरेक्स के उत्पादन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना होना चाहिए। जब तक उत्पादन जारी रहेगा, तब तक कोई भी अभियान, बयान या लाठीचार्ज सिर्फ एक दिखावा बनकर रह जाएगा। यह घटना सरकार से सीधे सवाल पूछती है: क्या सरकार नशे के खिलाफ है या फिर नशे की राजनीति के साथ?