कांग्रेस पर 25 सीटों का 'बोझ'?
महागठबंधन के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़कर केवल 17 सीटें जीती थीं, जिससे गठबंधन की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा था। अब RJD और अन्य सहयोगी चाहते हैं कि कांग्रेस इस बार 45-50 सीटों पर ही संतुष्ट हो जाए। इसका सीधा मतलब है कि कांग्रेस को अपनी पिछली संख्या से लगभग 20-25 सीटों का त्याग करना पड़ेगा।
RJD की चिंता साफ है: उसे अपने पारंपरिक वोट बैंक (यादव-मुस्लिम) से आगे बढ़कर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों में भी पैठ बनानी है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए, गठबंधन में नए सहयोगियों को शामिल करने और मौजूदा सहयोगियों को अधिक सीटें देने की रणनीति अपनाई जा रही है।
नए साथियों को साधने की कवायद
कांग्रेस द्वारा छोड़ी जाने वाली संभावित सीटें कई नए और मौजूदा सहयोगियों के बीच बांटी जा सकती हैं:
मुकेश सहनी की VIP: मछुआरा-नाविक समुदाय में अच्छी पकड़ रखने वाली VIP, जिसने पिछली बार 4 सीटें जीती थीं, इस बार 10 से ज़्यादा सीटों की मांग कर रही है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM): झारखंड में सत्ताधारी JMM भी बिहार की कुछ सीटों पर अपना दावा ठोक रही है।
भाकपा-माले (CPI-ML): 2020 में 19 में से 12 सीटें जीतकर शानदार प्रदर्शन करने वाली भाकपा-माले ने इस बार करीब 30 सीटों की मांग रखी है, यह तर्क देते हुए कि उनकी वोट ट्रांसफर क्षमता बहुत अच्छी है।
पशुपति पारस की RLJP: दलित वोटों को साधने के लिए पशुपति पारस के नेतृत्व वाली RLJP से भी बातचीत चल रही है, हालांकि उनकी चुनावी क्षमता को लेकर कुछ अनिश्चितता है।
सीपीआई (CPI) और सीपीएम (CPM): वामपंथी दल भी लगभग 6 से ज़्यादा सीटों पर समझौता कर सकते हैं।
RJD पर भी संतुलन का दबाव
हालांकि कांग्रेस पर त्याग का दबाव है, लेकिन RJD पर भी अपने सहयोगियों को समायोजित करने का दबाव है। पिछली बार 140 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने वाली RJD को इस बार अपने सहयोगी दलों की मांगों को ध्यान में रखते हुए समायोजन करना होगा। गठबंधन का मानना है कि सभी दलों को यथार्थवादी होकर एक मजबूत मोर्चा बनाना होगा ताकि सत्ताधारी BJP-JDU गठबंधन को टक्कर दी जा सके। बिहार विधानसभा चुनाव में अब मुश्किल से 4 महीने बचे हैं। सभी दल जल्द से जल्द सीट बंटवारे को अंतिम रूप देना चाहते हैं ताकि प्रचार अभियान को गति दी जा सके और संबंधित क्षेत्रों में अपनी दावेदारी मजबूत की जा सके। क्या कांग्रेस "महागठबंधन के बोझ से नहीं दबना चाहता" RJD की इस मांग को मानेगी, यह देखना दिलचस्प होगा।