मध्य प्रदेश में बाढ़ का कहर: रीवा समेत पूरे प्रदेश में हाहाकार, क्या विकास की पोल खोल रही बारिश barish Aajtak24 News

मध्य प्रदेश में बाढ़ का कहर: रीवा समेत पूरे प्रदेश में हाहाकार, क्या विकास की पोल खोल रही बारिश barish Aajtak24 News

रीवा/मध्य प्रदेश - लगातार हो रही मूसलाधार बारिश ने मध्य प्रदेश, खासकर रीवा संभाग में जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। चारों तरफ बाढ़ का मंजर है और ऐसा लग रहा है कि यह पहली बारिश ही प्रदेश के 'विकास' के दावों की पोल खोल रही है। सत्ताधारी दल जहां इन परिस्थितियों के लिए कांग्रेस पर ठीकरा फोड़ रहा है, वहीं पिछले 22 वर्षों से प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने के कारण यह आरोप प्रत्यारोप का खेल बेमानी लग रहा है।

लेखक का मानना है कि भाजपा सरकार विकास के नाम पर केवल पिछली सरकारों पर आरोप लगाती रही है, लेकिन व्यवस्था में सुधार के लिए कोई ठोस काम नहीं किया। बल्कि, प्राकृतिक संपदा को नष्ट किया जा रहा है और नदियों का अंधाधुंध उत्खनन जारी है। विडंबना यह है कि कांग्रेस शासनकाल में भ्रष्टाचार में लिप्त रहे कई चेहरे अब भाजपा में शामिल होकर सत्ता के कर्णधार बन गए हैं, जिससे भ्रष्टाचार की एक नई श्रृंखला शुरू हो गई है।

रीवा में 'विकास' बनाम 'विनाश': विशेष रूप से रीवा संभाग की बात करें तो, जहां एक समय 'विंध्य नायक' जैसे विकास पुरुष थे, जिनके कार्यकाल में शासकीय भूमियों और कार्यालयों को पार्टी कार्यालयों के नाम पट्टे किए गए। वहीं, वर्तमान भाजपा के 'विकास पुरुष' ने रीवा जिले की शासकीय संस्थाओं और भूमियों को विकास के नाम पर बिल्डरों और कुछ निजी लोगों को सस्ती दरों पर उपलब्ध करा दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि लोगों का ध्यान केवल भूमि हथियाने पर रहा, लेकिन नगरीय नियोजन और जल निकासी की व्यवस्था को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया।

नदियों का संकीर्णन और जल निकासी की समस्या: 1947 के बाद से रीवा जिले में नदियों के किनारे बस्तियों का बेतरतीब झुकाव बढ़ा है। सड़क चौड़ीकरण और अन्य निर्माण कार्यों के नाम पर नदियों को संकीर्ण किया गया है। रीवा जिले के प्रमुख पुराने नाले अब अभिलेखों से भी गायब दिख रहे हैं। विकास के नाम पर रिंग रोड, बाईपास और कई नई सड़कें तो बन गईं, लेकिन नदियों से आने वाले पानी की निकासी के लिए आवश्यक चौड़ाई और माध्यमों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।

आज आलम यह है कि सत्ताधारी दल के विधायक भी अपनी ही सरकार पर टिप्पणी कर रहे हैं कि रीवा नगर निगम 'विकास के नाम पर तालाब' में बदल गया है। नगर निगम के जनप्रतिनिधि भी वर्तमान सत्ता के विकास की उपलब्धियों को ही इस त्रासदी का कारण मान रहे हैं। नदियों के किनारे बस्तियां बसाने और सौंदर्यीकरण के नाम पर जल निकासी के रास्तों को संकीर्ण करने के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए?

ठेकेदारी बनाम जनहित: एक कहावत चरितार्थ हो रही है कि "जनता से जुड़ा हुआ नेता जनता के विकास की बात सोचता है, किंतु ठेकेदारी उद्योगों से जुड़ा हुआ व्यक्ति जनता और जनता की सुविधा से उसका वास्ता नहीं।" वर्तमान समय में रीवा जिले में कुछ नेताओं को छोड़कर अधिकांश ठेकेदार और उद्योगपति राजनीति में अपना परिचय बना रहे हैं और जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उनका पूरा ध्यान अब केवल निर्माण कार्यों और ठेकेदारी पद्धति पर केंद्रित है।

बाढ़ के बाद महामारी का खतरा और भविष्य के सवाल: बाढ़ के कारण कई लोग बेघर हो गए हैं। बच्चे, बूढ़े, गर्भवती महिलाएं - सभी बाढ़ की त्रासदी से परेशान हैं। बाढ़ के बाद अब महामारी का खतरा भी मंडरा रहा है। इस परेशानी का जिम्मेदार कौन है और इसकी समीक्षा कब होगी, यह आने वाला वक्त ही बताएगा। अब विकास के नाम पर वोट देने वाले मतदाताओं को भी यह विचार करना होगा कि क्या इससे बेहतर विकास संभव है।

लेखक का मानना है कि यदि यही विकास का तरीका है, तो आने वाले दिनों में सत्ताधारी और विपक्षी दल केवल आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित रहेंगे। निर्णायक लड़ाई कौन लड़ेगा, यह आने वाला वक्त ही निर्धारित करेगा। विपक्ष की भूमिका अब विपक्ष नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता निभा रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस के ही कई लोग आज भाजपा में शामिल होकर सत्ता में हैं और कथित रूप से अपनी "काली कमाई" को सुरक्षित करने में व्यस्त हैं।

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