मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर अभूतपूर्व रोक: सूखे, आर्थिक संकट और इस्लामी सिद्धांतों का नया अध्याय adhyay Aajtak24 News

 

मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर अभूतपूर्व रोक: सूखे, आर्थिक संकट और इस्लामी सिद्धांतों का नया अध्याय adhyay Aajtak24 News

रबात/मोरक्को - मुस्लिम बहुल राष्ट्र मोरक्को ने इस साल ईद-उल-अज़हा (बकरीद) पर पारंपरिक पशु कुर्बानी पर प्रतिबंध लगाकर एक ऐतिहासिक और विश्वव्यापी चर्चा छेड़ दी है। किंग मोहम्मद VI का यह अभूतपूर्व फैसला, देश के दशकों के सबसे गंभीर सूखे, भयावह आर्थिक संकट और बिगड़ते पर्यावरणीय हालात के जवाब में लिया गया है। यह निर्णय इसलिए भी अधिक महत्व रखता है क्योंकि मोरक्को की लगभग 99% आबादी इस्लाम धर्म को मानती है, और कुर्बानी इस्लाम के महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है।

संकट की जड़: सात साल का सूखा और उसका विनाशकारी प्रभाव

मोरक्को पिछले सात वर्षों से सूखे की भयानक मार झेल रहा है, जिसने देश की कृषि अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। इसका सीधा असर फसलों की पैदावार पर पड़ा है, जिससे भोजन और पशुओं के लिए चारे की भारी कमी हो गई है। आंकड़े बताते हैं कि इस भीषण सूखे के कारण देश में मवेशियों की संख्या में चौंका देने वाली 38% की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, देश के जल संसाधनों पर भी इसका गंभीर प्रभाव पड़ा है, जहां जलाशयों की भंडारण क्षमता में 23% की कमी आई है। पशुओं के लिए चारे की कमी ने बाजार में इसकी कीमतों को आसमान पर पहुंचा दिया है, जिसमें 50% की वृद्धि हुई है। इसका सीधा आर्थिक बोझ पशुपालकों और किसानों पर पड़ रहा है। इसी के साथ, मांस की कीमतों में भी अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए कुर्बानी का खर्च उठाना लगभग असंभव हो गया है। सरकार का स्पष्ट मानना है कि ऐसे हालात में बड़ी संख्या में पशुओं की कुर्बानी देना पहले से ही नाजुक आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिति को और बदतर कर देगा।

धार्मिक औचित्य: किंग मोहम्मद VI का दूरदर्शी दृष्टिकोण

किंग मोहम्मद VI, जो मोरक्को के राष्ट्राध्यक्ष होने के साथ-साथ देश के धार्मिक प्रमुख भी हैं, ने इस फैसले को इस्लामिक सिद्धांतों के अनुरूप ठहराया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि इस्लाम में कुर्बानी करना एक नेक कार्य है, लेकिन यह अनिवार्य (फ़र्ज़) नहीं है। उनका यह बयान मौजूदा चुनौतियों के सामने धार्मिक अनुष्ठानों को अनुकूलित करने के एक बड़े दृष्टिकोण को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि इस्लामिक विद्वानों और शासकों के लिए परिस्थितियों के अनुसार धार्मिक व्याख्याएं करना संभव है। किंग ने राष्ट्र की ओर से एक प्रतीकात्मक कुर्बानी देने की भी घोषणा की है, जिससे यह संदेश दिया जा सके कि वे धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए राष्ट्रहित को प्राथमिकता दे रहे हैं।

सरकार के कठोर और व्यापक कदम

कुर्बानी पर प्रतिबंध को प्रभावी बनाने के लिए मोरक्को सरकार ने कई कड़े कदम उठाए हैं:

  • बाजारों पर प्रतिबंध: ईद-उल-अज़हा से पहले लगने वाले सभी पशु बाजारों और अस्थायी मंडियों को बंद कर दिया गया है ताकि कुर्बानी के लिए पशुओं की खरीद-बिक्री रोकी जा सके।
  • आयात को प्रोत्साहन: देश में मांस और पशुधन की कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने इन पर लगने वाले आयात शुल्क (टैक्स) और मूल्य वर्धित कर (वैट) को निलंबित कर दिया है।
  • ऑस्ट्रेलिया से आयात: इस पहल के तहत, मोरक्को ने भोजन के लिए पशुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु ऑस्ट्रेलिया से 100,000 भेड़ों के आयात की एक बड़ी योजना बनाई है।
  • किसानों को राहत: पशुपालकों और किसानों को इस संकट से उबारने के लिए सरकार ने 6.2 बिलियन दिरहम (लगभग $620 मिलियन) का एक व्यापक सहायता कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम में वित्तीय सहायता, पशु स्वास्थ्य अभियान और पशुधन प्रजनन सुधार पहलें शामिल हैं।

जनता की प्रतिक्रिया और वैश्विक निहितार्थ

मोरक्को की अधिकांश जनता ने सरकार के इस साहसिक फैसले का समर्थन किया है, यह समझते हुए कि यह देश के दीर्घकालिक हित में है। हालांकि, कुछ लोगों ने इसे उनके धार्मिक मामलों में अनुचित हस्तक्षेप बताते हुए विरोध भी जताया है। यह फैसला भारत जैसे देशों के लिए भी प्रासंगिक है, जहाँ बकरीद पर पशु कुर्बानी को लेकर अक्सर शाकाहार का प्रचार करने वाले वर्गों और धार्मिक समूहों के बीच विवाद होते रहते हैं। मोरक्को का यह कदम एक मुस्लिम-बहुल देश द्वारा पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक चुनौतियों के सामने धार्मिक परंपराओं को अनुकूलित करने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह वैश्विक स्तर पर इस बात पर बहस को बढ़ावा दे सकता है कि कैसे धार्मिक स्वतंत्रता और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित किया जाए। मोरक्को का यह निर्णय न केवल उसके अपने भविष्य को आकार देगा, बल्कि यह अन्य देशों और धार्मिक समुदायों के लिए भी एक मिसाल कायम कर सकता है जो इसी तरह की जलवायु और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।


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