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पंचायत भवन' बना भ्रष्टाचार का अड्डा: बड़वानी में सरपंच-सचिवों ने मिलकर किया डेढ़ करोड़ का गबन, मोहन सरकार का कड़ा रुख rukh Aajtak24 News |
बड़वानी - मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी 'जीरो-टॉलरेंस' की नीति को एक बार फिर पुख्ता किया है। बड़वानी जिले के पाटी विकास खंड से एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जहाँ पांच ग्राम पंचायतों में करीब डेढ़ करोड़ रुपये के सरकारी फंड के गबन का खुलासा हुआ है। इस बड़े घोटाले में सीधे तौर पर 16 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, जिनमें पांच ग्राम पंचायतों के सरपंच, पांच सचिव और छह वेंडर शामिल हैं। यह कार्रवाई उन लोगों के लिए एक कड़ा संदेश है जो सरकारी योजनाओं के नाम पर जनता के पैसे का दुरुपयोग करते हैं, और इसने न केवल बड़वानी बल्कि पूरे प्रदेश के प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है।
'विकास' के नाम पर 'गबन' का खेल: कैसे जनता के पैसे पर फेरा गया हाथ?
यह पूरा मामला ग्राम पंचायतों में निर्माण कार्यों के नाम पर की गई भारी धांधली से जुड़ा है। प्राथमिक जाँच में पाया गया कि बड़वानी के पाटी ब्लॉक की ग्राम पंचायतें – लिंबी, कंड्रा, आवंली, वेरवाड़ा और ओसाड़ा – में सरपंचों और सचिवों ने वेंडरों के साथ मिलकर खुलेआम मिलीभगत कर करोड़ों रुपये की राशि सरकारी खजाने से निकाल ली। कागजों पर तो इन पैसों से सड़कें, सामुदायिक भवन, पुलिया या अन्य विकास कार्य पूरे दिखाए गए थे, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों से कोसों दूर थी। अधिकांश निर्माण कार्य या तो शुरू ही नहीं हुए थे, या फिर अधूरे पड़े हुए थे, जिसका सीधा मतलब है कि जनता के खून-पसीने की कमाई को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दिया गया। यह सीधा-सीधा सरकारी फंड का गबन और धोखाधड़ी है, जिसने ग्रामीण विकास की अवधारणा पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
प्रशासन का सख्त शिकंजा: नोटिस से एफआईआर तक की पूरी कहानी
इस गंभीर मामले में बड़वानी जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) जावला ने तत्काल और कड़े कदम उठाए। उन्होंने बताया कि, शुरुआती चरण में संबंधित वित्तीय प्रभारियों – सरपंचों, सचिवों और वेंडरों को मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की धारा 89 के तहत नोटिस जारी किए गए थे। इन सभी को 26 मई तक जवाब देने का समय दिया गया था। जब इन नोटिसों के जवाब संतोषजनक नहीं पाए गए और प्रथम दृष्टया गबन व धोखाधड़ी का मामला स्पष्ट रूप से सिद्ध हो गया, तो जिला पंचायत सीईओ ने तत्काल प्रभाव से एफआईआर दर्ज करने का आदेश जारी कर दिया। इस आदेश के बाद, तत्कालीन जनपद पंचायत सीईओ और वर्तमान जिला पंचायत परियोजना अधिकारी, निलेश नाग ने पाटी पुलिस थाने में एक विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इसी प्रतिवेदन के आधार पर ग्राम पंचायत लिंबी, कंड्रा, आवंली, वेरवाड़ा और ओसाड़ा के सरपंचों, सचिवों और छह वेंडरों के विरुद्ध भारतीय न्याय संहिता की विभिन्न गंभीर धाराओं – 318(2), 318(3), 316(5), 336(2), 336(3), 340(2), 61(2) – के तहत अपराध क्रमांक 227/25 पंजीबद्ध किया गया है। अब पुलिस इन सभी 16 आरोपियों की गिरफ्तारी की तैयारी में जुट गई है, जिससे इस बड़े घोटाले की तह तक पहुँचा जा सके और इसमें शामिल अन्य चेहरों को भी बेनकाब किया जा सके।
भ्रष्टाचार के 'खिलाड़ी' कौन-कौन? जिन पर गिरी है गाज
पाटी थाने में जिन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, उनमें प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
ग्राम पंचायत लिंबी:
- सरपंच: गिना पति भाकरिया नरगांवे
- प्रभारी सचिव: कैलाश सोलंकी
ग्राम पंचायत वेरवाड़ा:
- सरपंच: सायसिंग खुमसिंग डावर
- प्रभारी सचिव: टीकाराम खरते
ग्राम पंचायत कंड्रा:
- सरपंच: रतनसिंह गुलसिंग नरगांवे
- प्रभारी सचिव: मोती बिलबर खरते
ग्राम पंचायत आंवली:
- सरपंच: रुजली पति शोभाराम
- प्रभारी सचिव: विजय अलाले
ओसाड़ा:
- सरपंच: फुलमा मुकेश अलावे
- प्रभारी सचिव: सुरेश चेनसिंग सोलंकी
और ये हैं वो वेंडर जो इस पूरे खेल में शामिल थे:
- हुतैब ट्रेडर्स
- रवि वानखेड़े
- रबिक ट्रेडर्स
- रामेश्वर गोले
- आदर्श बिल्डिंग मटेरियल एंड सप्लायर
- जावेद खान
मुख्यमंत्री मोहन यादव का सख्त संदेश और आगे की राह
यह कार्रवाई दर्शाती है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार ग्रामीण विकास योजनाओं में किसी भी तरह के भ्रष्टाचार को लेकर कितनी गंभीर है। मुख्यमंत्री ने पदभार संभालने के बाद से ही सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन पर जोर दिया है, और यह कार्रवाई उसी दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है। यह एफआईआर सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि उन सभी सरकारी कर्मचारियों और ठेकेदारों के लिए एक स्पष्ट चेतावनी है जो जनता के पैसे को अपनी निजी संपत्ति समझने की भूल करते हैं। इस कार्रवाई से उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में ऐसे घोटालों पर अंकुश लगेगा और ग्रामीण विकास के लिए आवंटित राशि का सही और ईमानदारी से उपयोग हो पाएगा। क्या आपको लगता है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव के कार्यकाल में ऐसी सख्त कार्रवाइयां भ्रष्टाचार पर वाकई लगाम लगा पाएंगी, या यह सिर्फ एक शुरुआत है?